सारंगपुर हनुमान मंदिर - हनुमान जी के चमत्कारिक मंदिरों में से एक कष्टभंजन हनुमान मंदिर
हनुमान मंदिर, सारंगपुर गुजरात के बोटाद जिले के बरवाला तालुका के सारंगपुर गांव में स्थित भगवान हनुमान का एक मंदिर है, जिसे सारंगपुर के हनुमान के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर स्वामीनारायण संप्रदाय की अध्यक्षता में आता है।
इतिहास
मंदिर के इष्टदेव कष्टभंजन हनुमानदादा की मूर्ति की स्थापना स्वामीनारायण संप्रदाय के गोपालानंद स्वामी ने की थी। भगवान स्वामीनारायण के प्रथम श्रेणी के एक संत गोपालानंद स्वामी ने इस हनुमानजी की महिमा तब की जब ग्राम दरबार वाघा खाचर व्यवसाय में धीमा था। उस समय हनुमानजी का शरीर काँपने लगा। तब गोपालानंद स्वामी ने मूर्ति को एक लकड़ी की छड़ी से ठीक किया और देवता को स्थापित किया। तभी से इस मंदिर में भूत, प्रेत, प्रेत, डायन और पंथ का नाश करने के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है। शास्त्रीजी महाराज ने नए प्रकार के मंदिर का निर्माण करवाया था जो वर्तमान में है। उसकी मृत्यु लगभग ईसवी सन् में हुई। 1880 के आसपास महंत पद पर बने रहे। [1]
पहली (मंगलवार) आरती देखने के लिए, अहमदाबाद से 10:30 और 12:30 बजे बस चलती है जो सीधे मंदिर में गिरती है। मंदिर में सुबह की पहली मंगला आरती 5:30 बजे होती है।
स्थान
यह स्थान अहमदाबाद से लगभग 153 किमी दूर है और निकटतम बड़ा शहर बोटाड है।
इस सारंगपुर धाम की विशेषता यही है कि यहां स्वामी नारायण भगवान् के महान संत ऐश्वर्य मूर्ति गुरुदेव गोपालन स्वामी ने यहां के लोगों के दुःख दूर करने के लिए, कष्टों को दूर करने के लिए, लोगों की व्याधि को दूर करने के लिए एक ऐसे देव को प्रस्थापित किया जिनका नाम कष्ट भंजन हनुमान (Sarangpur Hanuman) जी महाराज है।
गुजरात का सारंगपुर महज तीन हजार की आबादी वाला एक छोटा सा गाँव है जो गुजरात के शहर भावनगर से 82 और अहमदाबाद से करीब 153 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां आने के लिए बस सेवा और प्राइवेट वीइकल आसानी से उपलब्ध रहते हैं।
सारंगपुर के ज्यादातर लोग स्वामी नारायण संप्रदाय से जुड़े हुए हैं लेकिन यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है कष्ट भंजन देव का अति भव्य मंदिर। किसी राजदरबार की तरह सजे सुन्दर मंदिर के विशाल और भव्य मंडप के बीच 45 किलो सोने और 95 किलो चांदी से बने एक सुन्दर सिंहासन पर पवनपुत्र विराजमान होकर अपने भक्तों की हर मुरादें पूरी करते हैं। इनके शीश पर हीरे जवाहरात का मुकुट है और निकट ही रखी गदा भी स्वर्ण निर्मित है।
तकरीबन 170 साल पुराने इस Sarangpur Hanuman मन्दिर की विशेषता यह है कि इसकी स्थापना भगवान् श्री स्वामी नारायण के अनुयायी परम पूज्य श्री गोपालानन्द स्वामी जी के द्वारा हुई थी।
सारंगपुर और श्री कष्ट भंजन देव का उल्लेख इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान् श्री स्वामी नारायण ने अपने जीवन का कुछ समय यहां बिताया था। आज भी उनकी स्मृतियां यहां के रोम रोम में अंकित हैं।
मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार के नजदीक आज भी मौजूद है गाँव के उस वक़्त के राजा श्री जीवा खाचर का दरबार जहां बैठकर स्वयं श्री स्वामी नारायण भगवान् ने अपने आशी वचन कहे थे।
मंदिर के इतिहास में उल्लेख है कि नगरवासियों के दुःख दर्द और कष्टों के निवारण के लिए श्री जीवा खाचर के पुत्र श्री वाघा खाचर ने स्वामी श्री गोपालानन्द जी से अनुरोध किया। श्री वाघा खाचर का उनके प्रति भाव देखकर स्वामी जी ने सारंगपुर में भक्तों के कष्ट दूर कर सके वैसे देव की स्थापना करने का वचन दिया।
सम्वत 1905 आश्विन वद पंचमी के दिन हनुमानजी महाराज की एक प्रतिमा की स्थापना की। जो आज कष्ट भंजन श्री हनुमानजी महाराज के स्वरुप में जगप्रसिद्ध है जिसे सारंगपुर हनुमान (Sarangpur Hanuman) भी कहा जाता है।
अति सुन्दर शिल्पकला और नक्काशी वाला यह मंदिर किसी राजदरबार से कम नहीं है और यहां विराजमान हैं श्री कष्ट भंजन देव। अद्भुत शृंगार से सजा दादा का दरबार किसी भी राजा से कम नहीं है। उनके आसपास स्थान मिला है उनकी वानर सेना को।
आश्चर्य की बात यह है कि उनके बाल ब्रह्मचारी के रूप में प्रसिद्ध हनुमान जी के पैरों के नीचे है स्त्री के रूप में प्रतिमा शनि देव की जो कि व्याधि उपाधि के तौर पर जाने जाते हैं और जिन्होंने हनुमान जी से बचने के लिए स्त्री का स्वरूप धारण किया था। और आज भी यहां हनुमान जी की पूजा और अर्चना करने मात्र से शनि दोष दूर हो जाते हैं।
कुछ भक्त तो मात्र शनि प्रकोप से बचने के लिए यहां आते हैं क्योंकि वो तो जानते हैं कि वो शनिदेव से डरते हैं लेकिन शनिदेव अगर किसी से डरते हैं तो वो स्वयं कष्ट भंजन हनुमान जी से।
कष्ट भंजन हनुमान जी की मंगलवार और शनिवार को विशेष आराधना होती है। भक्त अपने कष्टों और बुरी नजर के दोषों को दूर करने की कामना को लेकर यहां आते हैं। और मंदिर के पुजारी से बजरंग बली की पूजा करवाकर दोषों से मुक्ति पाते हैं। बजरंग बली के इस धाम को अन्य मंदिरों से अलग विशेष स्थान दिलाती है इनके पैरों के नीचे विराजमान शनिदेव की मूर्ति। क्योंकि शनि यहां बजरंग बली के चरणों में स्त्री रूप में दर्शन देते हैं। तभी तो जो भक्त शनि प्रकोप से परेशान होते हैं वे यहां आकर नारियल चढ़ाकर समस्त चिन्ताओं से मुक्ति पा जाते हैं।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि कष्ट भंजन देव के इस दर पर आकर उनके भक्तों की हर पीड़ा हर तकलीफ का इलाज होता है फिर चाहे बात बुरी नजर की हो या किसी भी प्रकार के हठीले रोगों की। हनुमान जी के दरबार में आकर इन सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। इनके दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।
विशेष बात यह है कि यहां ज्यादातर श्रद्धालु बुरी आत्माओं और भूत प्रेत जैसी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए आते हैं और यहां उन सबके लिए विशेष पूजा और विधि करवाई जाती है। इस विधि के लिए हर श्रद्धालु को पहले मंदिर से थोड़ी ही दूर पहले स्थित नारायण कुंड में स्नान करना पड़ता है।
नारायण कुंड का भी सारंगपुर के इतिहास में बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि स्वयं श्री स्वामी नारायण भगवान् यहां स्नान किया करते थे। एक मान्यता अनुसार यहां स्नान करने वाला कोई मनुष्य हो या कुंड के उपर से गुजरने वाला कोई पक्षी, हर जीव को सारे पापों से मुक्ति मिलती है।
बजरंग बली के इस मन्दिर में वैसे तो भक्तों का रोज तांता लगा रहता है। हर रोज करीब तीन से चार हजार श्रद्धालु यहां आते हैं और हर मंगलवार और शनिवार के दिन यह संख्या चार गुना हो जाती है। नारियल, पुष्प और मिठाई का प्रसाद केसरी नंदन को भेंट कर प्रार्थना करते हैं।
मान्यता है कि बजरंग बली के इसी रूप ने शनि के प्रकोप से मुक्त किया इसीलिए यहाँ की गई पूजा से शनि के प्रकोप तत्काल दूर हो जाते हैं। तभी तो दूर दूर से भक्त यहां आते हैं और शनि की दशा से मुक्ति पाते हैं। भक्तों को ऐसा विश्वास है कि केसरी नन्दन के इस रूप में 33 कोटि देवी देवताओं की शक्ति समायी हुई है। इस हनुमान मंदिर के प्रति लोगों को अगाध श्रद्धा है। क्योंकि भक्तों को यहां बजरंग बली के साथ शनि देव का भी आशीर्वाद मिल जाता है। कहते हैं कि कोई भक्त यहां नारियल चढ़ाकर अपनी कामना बोल दे तो उसकी झोली कभी खाली नहीं रहती। शनि दशा से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही संकट मोचन का रक्षा कवच भी मिल जाता है।
श्री कष्ट भंजन देव की ख्याति सिर्फ गुजरात में ही नहीं ब्लकि पूरी दुनिया में फैली हुई है इसी कारण से देश विदेश से करोड़ों लोग इस मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं।
मंदिर ट्रस्ट और मंदिर की सेवा करते सारे कर्मचारी बखूबी मंदिर की सारी व्यवस्था सम्भालते हैं। मंदिर परिसर के अंदर ही एक भोजनशाला है जहां सारे भक्तों के लिए दिन रात निःशुल्क भोजन की व्यवस्था की गई है। यहां भक्तों के रहने के लिए मंदिर प्रबंधन ने विशाल और भव्य धर्मशालाएं बनाई है जो सारी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है।
कष्ट भंजन हनुमान जी के इस मन्दिर में दो बार आरती का विधान है। पहली आरती सुबह 05:30 बजे होती है। आरती से पहले पवनपुत्र का रात्रि का श्रंगार उतारा जाता है फिर नए वस्त्र पहनाकर स्वर्ण आभूषणों से इनका भव्य श्रंगार किया जाता है और इसके बाद वेद मन्त्रों और हनुमान चालीसा के पाठ के बीच संपन्न होती है हनुमान लला की यह आरती।
इस मन्दिर के पास में ही एक गौशाला बनाई गई है जहां ऊंची नस्ल की गायों की परिवार के सदस्यों की तरह सेवा की जाती है और उनसे मिलने वाले गौ दूध का इस्तेमाल मंदिर में प्रसाद और भोजन सामग्री बनाने में होता है।
यहां प्रसाद के रूप में सुखड़ी नामक गुजराती मिठाई बनाई जाती है। जो हर किसी को मंदिर के परिसर में बने प्रसाद कक्ष से मिल सकती है।
यहां प्रमुख मंदिर के साथ ही में है भगवान् श्री स्वामी नारायण का बेहद सुन्दर मंदिर जहां उनकी स्मृतियों को आज भी संभालकर रखा गया है। Sarangpur Hanuman मंदिर के परिसर को साफ सुथरा रखने के लिए यहां के कर्मचारी निरंतर कार्यरत रहते हैं। यहाँ का निर्मल एवं स्वच्छ वातावरण भक्त को अपने प्रिय देव के निकट महसूस करवाता है और भक्त अपने आपमे एक सकारात्मक बदलाव पाता है।
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