भारतीय रेस कार चालक नारायण कार्तिकेयन का जीवन परिचय
नारायण कार्तिकेयन विश्व में भारत के सबसे तेज फार्मूला वन ड्राइवर के रूप में जाने जाते हैं । इस बात को ब्रिटिश मोटरिंग प्रेस द्वारा भी स्वीकार किया गया है । नारायण कार्तिकेयन का पूरा नाम कुमार राम नारायण कार्तिकेयन है । आज वह युवाओं के गति का प्रतीक हैं और खिलाड़ी के रूप में एक आदर्श हैं ।
नारायण कार्तिकेयन का जीवन परिचय
नारायण के पिता जी.आर. कार्तिकेयन पूर्व भारतीय राष्ट्रीय रैली चैंपियन हैं । इसी कारण नारायण की कार के खेलों में रुचि बचपन से ही जागृत हो गई थी । उनका सपना था भारत का प्रथम फार्मूला वन ड्राइवर बनना और उन्होंने उस स्वप्न को जल्दी ही पूरा कर दिखाया ।
नारायण की पहली रेस चेन्नई के पास श्री पेरम्बूर में हुई जिसका नाम था ‘फार्मूला मारुति’ । मात्र 16 वर्ष की आयु में भाग लेकर नारायण ने विजेता बन कर दिखाया । उन्होंने फ्रांस के एल्फ विन्फील्ड रेसिंग स्कूल से ट्रेनिंग ली और 1992 को फार्मूला रिनॉल्ट कार की पायलट एल्फ प्रतियोगिता में सेमी फाइनलिस्ट बने ।
1993 में नारायण फार्मूला मारुति रेस में भाग लेने भारत आए । उन्होंने ‘फार्मूला वॉक्सहाल जूनियर चैंपियनशिप’ में ब्रिटेन में भी भाग लिया । यूरोपीय रेसिंग में अनुभव के बाद 1994 में ‘फार्मूला फोर्ड जेटी सीरीज’ में फाउंडेशन रेसिंग टीम में नम्बर दो ड्राइवर के रूप में उन्होंने ब्रिटेन में भाग लिया । उसी वर्ष एस्टोरिल रेस में वह जीत गए । वह ‘ब्रिटिश फार्मूला फोर्ड सीरीज’ में यूरोप में चैंपियनशिप जीतने वाले प्रथम भारतीय बने । इसके पश्चात् नारायण कार्तिकेयन ने ‘फार्मूला एशिया चैंपियनशिप’ की ओर रुख किया । 1995 में उन्होंने कार रेस में भाग लिया और अपनी काबिलियत को साबित किया । मलेशिया के शाह आलम में उन्होंने द्वितीय रहकर अपना प्रभाव छोड़ा । 1996 का वर्ष उन्होंने फार्मूला वन रेसों में ही बिताया और सभी प्रतियोगिताओं में भाग लिया । फार्मूला एशिया इन्टरनेशनल सीरीज में जीतने वाले वह प्रथम भारतीय ही नहीं प्रथम एशियाई भी थे ।
1997 में नारायण पुन: ब्रिटेन लौट गए ताकि ब्रिटिश फार्मूला ओपेल चैंपियनशिप में भाग ले सकें । इसमें उन्होंने पोल पोजीशन में भाग लिया और डोमिंगटन पार्क में जीत हासिल की । अंकों के मामले में ओवरआल उन्होंने छठा स्थान प्राप्त किया । 1998 में नारायण ने ब्रिटिश फार्मूला थ्री चैंपियनशिप में पहली बार भाग लिया उनके साथ कार्लिन मोटर स्पोर्ट टीम भी थी । उन्हें अगले तीन वर्षों तक इसी टीम के साथ थोड़ी-बहुत सफलता हासिल होती रही । उस वर्ष की दो रेसों के फाइनल में उन्होंने दूसरा-तीसरा स्थान प्राप्त किया । इन रेसों में उन्होंने स्पा फ्रेंकर चैम्पस एंड सिल्वर स्टोन में केवल 10 राउंड में भाग लिया था । वह ओवरऑल मुकाबले में 12 स्थान पर रहे ।
1999 में नारायण ने पांच बार चैंपियनशिप जीती जिसमें से दो बार ब्रांड्स हैच रेस में विजयी रहे । वह दो बार पोल पोजीशन, तीन बार सबसे तेज लैप, दो लैप का रिकॉर्ड बनाने में सफल रहे । इस वर्ष वह 30 ड्राइवरों के बीच चैंपियनशिप मुकाबले में छठे स्थान पर रहे । मकाऊ ग्रैंड प्रिक्स में वह छठे स्थान पर रहे ।
2000 में उन्होंने ब्रिटिश एफ 3 चैंपियनशिप मुकाबले में भाग लिया और चौथे स्थान पर रहे । स्पा फ्रेंकर चैंप्स बेल्जियम और कोरियाई सुपर प्रिक्स की अन्तरराष्ट्रीय रेस में भी वह पोडियम तक पहुंचने में सफल रहे । 2001 में नारायण ने फार्मूला निप्पन एक 3000 चैंपियनशिप में भाग लिया और प्रथम दस डाइवरों के बीच स्थान प्राप्त किया । 2001 में ही उन्होंने 14 जून को सिल्वरटोन के फार्मूला वन कार की जगुआर रेसिंग में भाग लिया और वह इसमें टेस्ट ड्रा करने वाले वह प्रथम भारतीय बने । उनकी परफार्मेंस से प्रभावित होकर उन्हें सिल्वरटोन के बेंसन एंड हेजेज जार्डन हांडा ईजे 11 में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया ।
2002 में नारायण ने टीम टाटा आर सी मोटर स्पोर्ट के साथ पोल पोजीशन लेकर टेलीफोनिका वर्ल्ड सीरीज में भाग लिया । उन्होंने ब्राजील के इन्टरलागोस सर्किट में सबसे तेज नान एफ वन लैप टाइम का रिकॉर्ड बनाया । 2003 में निसान की वर्ल्ड सीरीज में भाग लेते हुए कार्तिकेयन ने मिनार्डी टीक से दो रेस जीतीं और चैंपियनशिप में ओवरऑल चौथा स्थान प्राप्त किया ।
2004 में नारायण को रेस ड्राइव के लिए आमंत्रित किया गया परन्तु वह स्पांसरशिप फंड इकट्ठा न कर पाने के कारण इसमें भाग नहीं ले सके । वह निसान की वर्ल्ड सीरीज में भाग लेते रहे और स्पेन के वेलेन्सिया और फ्रांस के मैग्नी कोर्स में दो बार जीतने में सफल रहे ।
2005 में नारायण ने जार्डन फार्मूला वन टीम के साथ करार किया और वह भारत के प्रथम फार्मूला वन रैंकिंग ड्राइवर बन गए । मेलबर्न में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन शंघाई के ग्रैंड प्रिक्स में उनकी रेस क्रेश के साथ समाप्त हुई । 2005 के अंत तक जार्डन टीम को मिडलैंड ने टेकओवर कर लिया । लेकिन नारायण बड़ी राशि न देने के कारण इसके सदस्य नहीं बन सके ।
जनवरी 2006 में नारायण विलियम्स टेस्ट ड्राइवर के रूप में चौथे स्थान पर चुने गए । 2007 में वह विलियम्स के साथ ही रहे और उनका तीसरे स्थान पर प्रोमोशन कर दिया गया । नारायण मानते हैं कि विलियम्स में रेस ड्राइवर के स्थान पर टेस्ट ड्राइवर के रूप में भाग लेना उनके लिए फार्मूला वन टेक्नोलाजी के लिए अच्छा रहा ।
कार रेसिंग के अतिरिक्त नारायण कार्तिकेयन को ट्रैप एंड स्कीट शूटिंग, फ़ोटोग्राफी व टेनिस का शौक है । वह स्वयं को फिट रखने के लिए योग तथा मेडिटेशन करते रहते हैं । उनका एक उद्योगपति की बेटी पवर्णा से विवाह हुआ है । नारायण भारत के प्रथम फार्मूला वन रेसर ड्राइवर बनने का स्वप्न पूरा कर चुके हैं । उन्होंने कोयम्बटूर में ‘स्पीड एन कार रेसिंग’ नाम की मोटर रेसिंग अकादमी खोली है जिसमें वह अपने जैसे रेसिंग के शौकीन युवा भारतीयों को ट्रेनिंग देते हैं ।
उपलब्धियां :
नारायण कार्तिकेयन भारत के प्रथम फार्मूला वन कार ड्राइवर हैं |
उन्होंने 16 वर्ष की आयु में चेन्नई में फार्मूला मारुती में भाग लेकर विजय प्राप्त की ।
1992 में वह फार्मूला रिनाल्ट कार की पायलट एल्फ प्रतियोगिता में सेमी फाइनल तक पहुंचे ।
1995 में ‘फार्मूला एशिया चैंपियनशिप’ में वह द्वितीय स्थान पर रहे ।
1996 में नारायण ‘एशिया इंटरनेशनल सीरीज’ जीतने वाले प्रथम भारतीय ही नहीं, प्रथम एशियाई थे ।
1997 के ‘ब्रिटिश फार्मूला ओपेल चैंपियनशिप’ में उन्होंने डेमिंगटन में पोल पोजीशन लेकर जीत हासिल की ।
2001 में नारायण फार्मूला निप्पन एफ 3000 चैंपियनशिप मुकाबले में प्रथम दस लोगों में अपना स्थान बना सके ।
2005 में नारायण जार्डन फार्मूला वन टीम के सदस्य बने और भारत प्रथम फार्मूला वन ड्राइवर बने ।
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