The Other Story of How India Won Its Freedom पुस्तक का विमोचन

Jan 12, 2023 - 11:06
Jan 12, 2023 - 13:08
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The Other Story of How India Won Its Freedom पुस्तक का विमोचन

आजादी का एक ही दृष्टिकोण हमेशा से हमें बताया गया, जबकि देश को आजाद कराने में अनेक व्यक्तियों, विचारों व संगठनों का बहुमूल्य योगदान था, यह पुस्तक उन्ही सशस्त्र आंदोलन को जनता को बताने का एक अच्छा प्रयास है

इस पुस्तक में क्रांतिकारियों के साथ-साथ उनके आदर्श, क्रांति की सोच की व्याख्या, उनकी मानवीय भावनाएं और उनके द्वारा अनुभव की गई त्रासदी सभी को अच्छी तरह से मोतियों की भांति एक माला में पिरोने का काम किया गया है

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में 15 अगस्त को पंच प्राण की बात की थी, विरासत पर गर्व व गुलामी की निशानियों से मुक्ति पंच प्राणों का महत्वपूर्ण हिस्सा है

इतिहास कई मान्यताओं को जन्म देता है लेकिन इसे हार-जीत के आधार पर नहीं लिखा जा सकता, क्योंकि प्रयासों के भी कई पहलू होते हैं

इतिहास को वास्तविकता, प्रयासों के मूल्यांकन और प्रयासों के सभी पहलुओं के एनालिसिस के आधार पर लिखना चाहिए तभी इतिहास अपने आप में परिपूर्ण होता है

सशस्त्र क्रांति द्वारा जगाई गई देशभक्ति की ज्वाला के आधार पर ही आज़ादी का आंदोलन सफल हुआ था, अगर देश में सशस्त्र क्रांति की समानांतर धारा ना चली होती तो देश को आजाद होने में कई दशक और लगते

स्वतंत्रता आंदोलन का भारतीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करके युवाओं के सामने नहीं रखा गया बल्कि अंग्रेजों के चश्मे से देखकर इतिहास लिखा गया

जब भगत सिंह को फांसी दी गई उस दिन लाहौर से लेकर कन्याकुमारी तक किसी के घर में चूल्हा नहीं जला था, भगत सिंह जी की शहादत ने हर किसी के मन में कभी ना बुझने वाली देशभक्ति की ज्वाला प्रदीप्त करने का काम किया

इतिहास को चाहे तोड-मरोड़ कर लिखा गया हो परन्तु अब इतिहासकारों को देश के गौरवमयी इतिहास को वास्तविकता से देश के सामने रखना चाहिए

आजादी के लिए अनेक लोगों के प्रयास हो या शिवाजी महाराज के बाद 1857 क्रांति से जनमानस में स्वराज के संस्कार देने हो इन सब प्रयासों को इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए

आज तक सशस्त्र क्रांति के इतिहास को छुटपुट व्यक्तिगत प्रयास बताया जाता था लेकिन इस पुस्तक को पढ़ने के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि यह छुटपुट व्यक्तिगत प्रयास ना होकर सोच समझ कर किया गया सामूहिक प्रयास था

श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे व्यक्तियों ने आजादी के स्वप्न को फैलाने का काम किया और सावरकर जी जैसे व्यक्तियों ने उसे जमीन पर चरितार्थ करने का काम किया

ये सारे प्रयास ना तो बिना सोच वाले थे, ना असंगठित थे और ना ही असफल थे, ये प्रयास एक सोची-समझी विचारधारा के आधार पर किए गए थे, संगठित थे, इन प्रयासों ने आंदोलन की सफलता में बहुत बड़ा योगदान दिया है जिसे कोई नहीं नकार सकता

हमें इतिहास को एक्स्ट्रीमिस्ट बनाम मॉडरेट्स की धारा से निकालकर वास्तवदर्शी बनाना होगा, किसी एक आंदोलन का महिमामंडन करने के लिए हज़ारों लोगों की तपस्या, बलिदान को नकारा नहीं जा सकता

नेताजी सुभाषचंद्र बोस और INA को जितना सम्मान और स्थान देश के इतिहास में मिलना चाहिए था वो नहीं मिला, नेताजी वो तेजपुंज हैं जो आने वाली पीढ़ियों तक युवाओं को देशभक्त बनने की प्रेरणा देते रहेंगे, आज नेताजी की प्रतिमा कर्तव्य पथ पर देख मन को बहुत संतोष मिलता है

इतिहास बहुत क्रूर होता है और ये अंधेरी रात्रि में बिजली की तरह चमकता है और इसे स्वीकार करना ही पड़ता है, हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को कोई दबा नहीं सकता, लुप्त नहीं कर सकता और छिपा नहीं सकता

हमारे यहां व्यक्ति, राष्ट्र और संस्कृति कभी अलग नहीं रहे हैं, ये तीनों एक ही हैं और इस मूल विचार के आधार पर ही सशस्त्र क्रांति की नींव पड़ी थी

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में Revolutionaries – The Other Story of How India Won Its Freedom पुस्तक का विमोचन किया।

अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह मंत्री ने अपने संबोधन की शुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देकर की। श्री अमित शाह ने कहा कि आजादी का एक ही दृष्टिकोण हमेशा से हमें बताया गया, जबकि देश को आजाद कराने में अनेक व्यक्तियों, विचारों व संगठनों का बहुमूल्य योगदान था, यह पुस्तक उन्ही सशस्त्र आंदोलन को जनता को बताने का एक अच्छा प्रयास है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इतिहास को बारीकी से पढ़ना और उसके संदेश को आने वाली पीढ़ियों में सटीक तरीके से देना हर पीढ़ी का दायित्व होता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में 15 अगस्त को पंच प्राण की बात की थी और विरासत पर गर्व व गुलामी की निशानियों से मुक्ति पंच प्राणों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। श्री शाह ने कहा कि जिस देश की नई और वर्तमान पीढ़ी को अपनी विरासत पर गर्व नहीं होता है वो कभी अपने देश को महान नहीं बना सकती। गुलामी के काल की मान्यताओं और सोच को लेकर चलने वाले लोग कभी देश की सोच को गुलामी से मुक्त नहीं कर सकते। उन्होने कहा कि हमारे इतिहास के लेखन को गुलामी की सोच से मुक्ति दिलाने की ज़रूरत है और वीर सावरकर ने सबसे पहले यह प्रयास किया था। श्री शाह ने कहा कि पूरा देश और सभी लोग वर्ष 1857 की क्रांति को गदर के नाम से जानते थे लेकिन पहली बार वीर सावरकर ने 1857 की क्रांति को सबसे पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा और वहीं से नरेटिव को बदलने की शुरूआत की।

श्री अमित शाह ने कहा कि इतिहास कई मान्यताओं को जन्म देता है लेकिन इसे हार-जीत के आधार पर नहीं लिखा जा सकता, क्योंकि प्रयासों के भी कई पहलू होते हैं। श्री शाह ने कहा कि इतिहास को वास्तविकता, प्रयासों के मूल्यांकन और प्रयासों के सभी पहलुओं के एनालिसिस के आधार पर लिखना चाहिए और तभी इतिहास अपने आप में परिपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि सशस्त्र क्रांति के इतिहास के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, क्योंकि कई इतिहासकार इस प्रयास को विलुप्त करने में लगे रहे, कई लोगों ने इसे कम महत्व दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को ये मालूम नहीं है कि जब भगत सिंह को फांसी दी गई उस दिन लाहौर से लेकर कन्याकुमारी तक किसी के घर में चूल्हा नहीं जला था। भगत सिंह जी की शहादत ने हर किसी के मन में कभी ना बुझने वाली देशभक्ति की ज्वाला प्रदीप्त करने का काम किया था। उन्होंने कहा कि अगर पूरी सशस्त्र क्रांति के योगदान का मूल्यांकन करना है तो इसे आइसोलेट नहीं किया जा सकता है क्योंकि बहुत सारे लोग मानते हैं कि सशस्त्र क्रांति द्वारा जगाई गई देशभक्ति की ज्वाला के आधार पर ही आज़ादी का आंदोलन सफल हुआ था।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि अगर सशस्त्र क्रांति की समानांतर धारा ना चली होती तो स्वतन्त्रता में शायद कई दशक और लग जाते। पूरे देश में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने मात्र वंदे मातरम लिखकर चेतना को जागृत किया। ग़दर पार्टी के पूरे प्रयासों ने समग्र देश के अंदर अनेक स्थानों पर जबरदस्त सुषुप्त चेतना की जागृति और निर्माण किया जोकि एक बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि इतिहास में इन प्रयासों को जो उचित सम्मान मिलना चाहिए दुर्भाग्य से वह नहीं मिला। श्री शाह ने कहा कि आजादी के बाद हमारे इतिहास को हमारे दृष्टिकोण से लिखने और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करके युवा बच्चों के सामने रखने की जिनकी जिम्मेदारी थी कि इसमें कहीं ना कहीं चूक हुई है। अंग्रेजीयत के चश्मे से पढ़कर इतिहास को लिखा गया जिसके चलते कन्फ्यूजन हुआ। उन्होने विश्वास जताया कि इस किताब के माध्यम से इस धुंध को साफ करने का काम होने वाला है। लोग कहते हैं कि विभिन्न कारणों से आज तक इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया लेकिन अब हमें इसे सही तरीके से लिखने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने इतिहास के विद्यार्थियों और अध्यापकों का आह्वान किया कि वे देश के गौरव को बिना तोड़े-मरोड़े अपनी मेहनत और रिसर्च से व्याख्यायित कर वास्तविक इतिहास की रचना करें और ऐसे 300 व्यक्तियों की खोज करें जिन्होंने भारत को एक देश महान बनाया।

श्री अमित शाह ने कहा कि सन् 1857 से पहले और बाद में, कभी भी इस देश के किसी भी कोने में अंग्रेजों को स्वीकारा नहीं गया बल्कि एक-एक इंच जमीन के लिए क्रांतिकारियों ने संघर्ष किया और लड़ाई लड़ी जो आजादी बरकरार रखने का ही एक संघर्ष थी और जिसे इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई सारे ऐसे लोग थे जिन्होंने कुछ ना प्राप्त होने की स्थिति में भी 1857 की क्रांति में लड़ाई लड़ी और इसी क्रांति ने देश की जनता के मन में शिवाजी महाराज के बाद पहली बार स्वराज के संस्कार डालने का प्रयास किया और वहीं से हमारी आजादी की लड़ाई की भूमिका की नींव भी डाली गई। गृह मंत्री ने कहा कि चाहे अहिंसक आंदोलन हो या सशस्त्र क्रांति, सबकी नींव 1857 की क्रांति में ही है और इन सब जानकारियों को समाहित कर सच्चे ऐतिहासिक तथ्यों को देश की नई पीढ़ी के सामने रखने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ इतिहासकारों की भी है।

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि किताब के आठों अध्यायों में एक निरंतरता है और इन्हें अलग अलग करके नहीं पढ़ा जा सकता। प्रत्येक अध्याय दूसरे अध्याय के साथ एक सूत्र में जुड़ा हुआ है। इस पुस्तक में क्रांतिकारियों के साथ-साथ उनके आदर्श, क्रांति की सोच की व्याख्या, उनकी मानवीय भावनाएं और उनके द्वारा अनुभव की गई त्रासदी सभी को अच्छी तरह से मोतियों की भांति एक माला में पिरोने का काम किया गया है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी सिद्धि यह है कि आज तक सशस्त्र क्रांति के इतिहास को छुटपुट व्यक्तिगत प्रयास बताया जाता था लेकिन इस पुस्तक को पढ़ने के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि यह छुटपुट व्यक्तिगत प्रयास ना होकर सोच समझ कर किया गया सामूहिक प्रयास था।

श्री अमित शाह ने कहा कि पुस्तक के 8 अध्यायों को एक अध्याय मान कर पढ़ने से सशस्त्र क्रांति की अवधारणा का पता चलेगा और हम जान पाएंगे कि सशस्त्र क्रांति करने वाले स्वभावगत हिंसा के पथ के अनुयाई नहीं थे बल्कि उन्होंने बंदूकधारी अंग्रेजों से लड़ने और उनसे देश को आजाद करवाने के लिए हिंसा को जरिया बनाया। वे भी उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों का अनुकरण करने वाले लोग थे जिन का गलत चित्रण कर उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया गया। उन्होंने कहा कि देश को आजादी दिलाने में साहित्यकारों, किसान आंदोलनों के जरिए अंग्रेज हुकूमत को हिलाकर जनजागृति करने वाले किसानों, देश के हर कोने में फैले हुए जनजातीय समाज, सबका योगदान था। जनजातीय समाज ने 1857 से पहले भी अपनी परंपरा को प्रदूषित ना होने देने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठाकर लड़ाई लड़ी। सशस्त्र क्रांतिकारियों ने देश भक्ति से प्रेरित होकर, दुनिया भर की अनेक घटनाओं से प्रेरणा लेकर अंग्रेजों के चंगुल से देश को आजाद कराने के लिए एक भागीरथ प्रयास किया।

श्री अमित शाह ने कहा कि 1909 में वीर सावरकर ने सशस्त्र क्रांति के सफल होने के लिए इसके अखिल भारतीय स्वरूप को तय करने की आवश्यकता पर बल देने के लिए अभिनव भारत की स्थापना की जिसे आजादी के बाद स्वंय उन्होंने ही बंद कर दिया क्योंकि उसका उद्देश्य समाप्त हो गया था। इन भागीरथ प्रयासों को छुटपुट प्रयास का नाम देकर इन महान प्रयासों का अवमूल्यन नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की व्यक्तिगत देशभक्ति ही अपने आप में बहुत महान होती है। एक समूह,एक विचारधारा के तहत देश को आजाद कराने के इस प्रयास को हमें समझकर, स्वीकारकर प्रचारित करना होगा। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश को आजाद कराने के लिए कई लोगों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, कई बार घर की घर की कुर्की हो गई,परिवार जनों को जेल में डाल दिया गया, कई लोग अंडमान निकोबार में काला पानी की सजा भुगतते रहे और फांसी चढ़ गए, इन प्रयासों को कतई व्यक्तिगत और विफल प्रयास नहीं कहा जा सकता।

श्री अमित शाह ने कहा कि जब श्री नरेन्द्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा की अस्थियां इतने सालों बाद वापस लाने का काम किया क्योंकि श्याम जी अपनी वसीयत में कहकर गए थे कि मेरी अस्थियों को देश आज़ाद होने के बाद ही प्रवाहित किया जाए। उन्होंने कहा कि इस प्रयास को कोई कैसे छुट-पुट प्रयास कह सकता है। ऐसे सभी लोगों ने आज़ादी के स्वप्न को आकार देने का काम किया और वीर सावरकर जैसे लोगों ने ज़मीन पर लड़ाई लड़ने का काम किया। श्री शाह ने कहा कि ये सारे प्रयास ना तो बिना सोच वाले थे, ना असंगठित थे और ना ही असफल थे। ये प्रयास एक सोची-समझी विचारधारा के आधार पर किए गए थे, संगठित थे और इन प्रयासों ने आंदोलन की सफलता में बहुत बड़ा योगदान दिया है जिसे कोई नहीं नकार सकता।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमें इतिहास को एक्स्ट्रीमिस्ट बनाम मॉडरेट्स की धारा से निकालकर वास्तवदर्शी बनाना होगा। उन्होंने कहा कि किसी एक आंदोलन का महिमामंडन करने के लिए हज़ारों लोगों की तपस्या, बलिदान को कैसे नकारा जा सकता है। श्री शाह ने कहा कि हमें समझना होगा कि हमें आजादी अनुदान में नहीं मिली है, लाखों लोगों के बलिदान और रक्त बहाने के बाद ये आजादी मिली है। उन्होंने कहा कि आज जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की प्रतिमा कर्तव्यपथ पर लगी है तो मन को बहुत संतोष मिलता है। उन्होंने कहा कि नेता जी किसी की स्पर्धा में नहीं है और स्पर्धा के भाव से उनके कामों और महान प्रयासों का अवमूल्यन कैसे किया जा सकता है क्योंकि नेता जी वो तेजपुंज हैं जो पीढ़ियों तक हज़ारों युवाओं को देशभक्त बनने की प्रेरणा देगा। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस और INA को जितना सम्मान और स्थान देश के इतिहास में मिलना चाहिए था वो नहीं मिला, नेताजी वो तेजपुंज हैं जो आने वाली पीढ़ियों तक युवाओं को देशभक्त बनने की प्रेरणा देते रहेंगे, आज नेताजी की प्रतिमा कर्तव्य पथ पर देख मन को बहुत संतोष मिलता है।

श्री अमित शाह ने कहा कि आज देश के युवा का रूझान बदल रहा है और देश की मान्यताएं भी बदल रही हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां देश के लिए कई वर्षों तक संघर्ष करने वाले लोगों का बड़ा इतिहास रहा है और वो ही हमारे क्रांतिवीरों के प्रेरणास्त्रोत थे। श्री शाह ने कहा कि सही नरेटिव को कुछ लोगों ने दबाकर रखा और ऐसे लोगों को कहना चाहता हूं कि इतिहास बहुत क्रूर होता है और ये अंधेरी रात्रि में बिजली की तरह चमकता है और इसे स्वीकार करना ही पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को कोई दबा नहीं सकता, लुप्त नहीं कर सकता और छिपा नहीं सकता। श्री शाह ने कहा कि अनेक लोगों ने अनेक प्रकार से देश को आज़ाद करने का काम किया। उन्होंने कहा कि हमारे यहां व्यक्ति, राष्ट्र और संस्कृति कभी अलग नहीं रहे हैं, ये तीनों एक ही हैं और इस मूल विचार के आधार पर ही सशस्त्र क्रांति की नींव पड़ी थी।

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