स्वदेस २००४ में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म
स्वदेस २००४ में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है, जिसका लेखन, निर्देशन और निर्माण आशुतोष गोवरिकर ने किया। यह एक अनिवासी भारतीय (एनआरआई) की सच्ची कहानी पर आधारित है जो अपनी मातृभूमि को लौटता है। फिल्म में शाहरुख़ ख़ान, गायत्री जोशी, किशोरी बलाल प्रमुख भूमिकाओं में हैं, जिसमें दया शंकर पांडे, राजेश विवेक, लेख टंडन सहायक भूमिका में और मकरंद देशपांडे एक विशेष भूमिका में दिखाई दिये। रिलीज पर फिल्म को व्यापक आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। संगीत जावेद अख्तर द्वारा लिखे गए गीतों के साथ ए॰ आर॰ रहमान ने बनाया था।
संक्षेप
मोहन भार्गव एक अनिवासी भारतीय है जो हजारों अन्य अनीवासी भारतीयों की तरह अमेरिका मे रहता है और नासा मे प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम करता है। बरसों पहले वह अनाथ हो गया था और उसकी देखरेख एक दाई ने की थी जिसे वो मां समान मानता है। अचानक उसे उनकी याद आती है और वो उन्हें अमेरिका ले जाने आता है। पर वे जाने से मना कर देती हैं क्योंकी बर्फ की हस्ती होती है अपने पानी मे मिल जाना। मोहन गांव की परेशानियों से रूबरू होता है और बिजली की समस्या के लिये एक समाधान भी निकाल लेता है और उसे मूर्त रूप देता है। इन सब दौरान उसे बचपन की साथी गायत्री भी मिलती है जिससे उसे प्रेम हो जाता है। फिर वह नासा के काम से वापस अमेरिका चला जाता है। किन्तु वहां कार्य मे उसका मन नहीं लगता और वह नासा मे नौकरी छोड़ कर अपने गाँव आ जाता है और यहीं बस जाता है।
कहानी
मोहन भार्गव (शाहरुख़ ख़ान) एक भारतीय है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में नासा में ग्लोबल प्रिसिपीटेशन मेजरमेंट (जीपीएम) प्रोग्राम में परियोजना प्रबंधक के रूप में काम करता है। वह उत्तर प्रदेश में अपने घर पर एक दाई माँ कावेरी अम्मा (किशोरी बलाल) के बारे में चिंता करता रहता है, जो बचपन के दिनों में उसकी देखभाल करती थी। उसके माता-पिता की मृत्यु के बाद, कावेरी अम्मा दिल्ली में एक वृद्धाश्रम में रहने चली गईं और मोहन से उनका संपर्क टूट गया। मोहन भारत जाना चाहता है और कावेरी अम्मा को अपने साथ वापस अमेरिका लाना चाहता है। वह कुछ हफ्तों की छुट्टी ले लेता है और भारत की यात्रा करता है। वह वृद्धाश्रम जाता है लेकिन उसे पता चलता है कि कावेरी अम्मा अब वहाँ नहीं रहती हैं और कुछ समय पहले चरणपुर नाम के एक गाँव में चली गई। मोहन फिर उत्तर प्रदेश में चरणपुर की यात्रा करने का फैसला करता है।
मोहन इस डर से गाँव तक पहुँचने के लिए शिविर के लिये उपयोग होने वाली एक वैन किराये पर ले लेता है कि उसे वहाँ शायद आवश्यक सुविधाएँ न मिलें। चरणपुर पहुँचने पर, वह कावेरी अम्मा से मिलता है और उसे पता चलता है कि यह उसके बचपन की दोस्त गीता (गायत्री जोशी) थी, जो अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद अपने साथ रहने के लिए कावेरी अम्मा को ले आई थी। गीता चरणपुर में एक स्कूल चलाती है और शिक्षा के माध्यम से ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार के लिए कड़ी मेहनत करती है। हालाँकि, गाँव जातिवाद और रूढ़िवादी मान्यताओं से ग्रस्त है। गीता को मोहन का आना पसंद नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि वह उसे और उसके छोटे भाई चीकू को अकेला छोड़कर कावेरी अम्मा को अपने साथ वापस अमेरिका ले जाएगा। कावेरी अम्मा, मोहन से कहती है कि उन्हें पहले गीता की शादी करने की जरूरत है, और यह उनकी जिम्मेदारी है। गीता महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के लिये अभियान चलाई रहती है। मोहन, गीता की पिछड़े समुदायों और लड़कियों के बीच शिक्षा अभियान चलाकर मदद करने की कोशिश करता है।
धीरे-धीरे मोहन और गीता के बीच प्यार पनपता है। कावेरी अम्मा मोहन को कोडी नाम के गाँव जाने और हरिदास नाम के एक व्यक्ति से पैसे वसूल करके लाने को कहती हैं, जो गीता की जमीन किराये पर ले रखा है। मोहन कोडी का दौरा करता है और वहाँ देखता है कि हरिदास अपने परिवार को हर रोज भोजन उपलब्ध कराने में भी असमर्थ है। हरिदास की मुहताज स्थिति को देखकर मोहन सहानुभूति महसूस करता है। हरिदास ने मोहन से कहा कि चूँकि उसके जातिगत पेशे, बुनकरी से उसे कोई पैसा नहीं मिल रहा था, वह किराये पर खेती करने लगा। लेकिन पेशे में इस बदलाव के कारण गाँव से उसका बहिष्कार हो गया और गाँव वालों ने उसे उसकी फसलों के लिए पानी देने से भी मना कर दिया। मोहन इस दयनीय स्थिति को समझता है और महसूस करता है कि भारत के कई गाँव अब भी कोडी की तरह हैं। वह भारी मन से चरणपुर लौटता है और उसके कल्याण के लिए कुछ करने का फैसला करता है।
मोहन अपनी छुट्टी तीन और हफ्तों के लिये बढ़ा लेता है। उसे पता चलता है कि चरणपुर में बिजली न आना और लगातार कटौती एक बड़ी समस्या है। उसने पास के जल स्रोत से एक छोटी पनबिजली उत्पादन सुविधा स्थापित करने का निर्णय लिया। मोहन अपने स्वयं के धन से आवश्यक सभी उपकरण खरीदता है और बिजली उत्पादन इकाई का निर्माण खुद करता है। इकाई काम करने लगती है और गाँव को पर्याप्त, बिना रुकावट के बिजली मिलने लगती है।
हालाँकि, मोहन को बार-बार नासा के अधिकारियों द्वारा बुलाया जाता है क्योंकि नासा परियोजना जिस पर वह काम कर रहा था वह आखिरी चरणों में पहुँच रही है। उसे जल्द ही अमेरिका लौटना होता है। कावेरी अम्मा उसे बताती हैं कि वह चरणपुर में रहना पसंद करेंगी क्योंकि उनके लिए अब इस उम्र एक नए देश के तौर-तरीके सीखना मुश्किल होगा। गीता भी उसे बताती है कि वह किसी दूसरे देश में नहीं बसना चाहती और अगर मोहन उसके साथ भारत में रहेगा तो उसे अच्छा लगेगा। मोहन परियोजना को पूरा करने के लिए भारी मन से अमेरिका लौटता है। हालाँकि, अमेरिका में, वह भारत में बिताए अपने समय को याद करता है और वापस जाने की इच्छा रखता है। अपनी परियोजना के सफल समापन के बाद, वह अमेरिका छोड़ देता है और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में काम करने के इरादे से भारत लौटता है, जहां से वह नासा के साथ भी काम कर सकता है। अंत में दिखाया जाता है कि मोहन गाँव में रह रहा है और मंदिर के पास कुश्ती लड़ रहा है।
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