माउंट आबू भारत के राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले में स्थित हिल स्टेशन

Jan 8, 2023 - 16:07
Jan 8, 2023 - 10:42
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माउंट आबू भारत के राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले में स्थित हिल स्टेशन
माउंट आबू भारत के राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले में स्थित हिल स्टेशन

माउंट आबू भारत के राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले में स्थित हिल स्टेशन है। यह अरावली पहाड़ियों में स्थित एक हिल स्टेशन है जो एक 22 किमी लम्बे और 9 किमी चौड़े पत्थरीले पठार पर बसा हुआ है। इसकी सबसे ऊँची चोटी 1,722 मी॰ (5,650 फीट) ऊँचा गुरु शिखर है

समुद्र तल से १२२० मीटर की ऊँचाई पर स्थित आबू पर्वत (माउण्ट आबू) राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है । इस शहर का प्राचीन नाम अर्बुदांचल था , इस स्थान पर साक्षात भगवान शिव ने भील दंपत्ति आहुक और आहूजा को दर्शन दिए थे । यह अरावली पर्वत का सर्वोच्च शिखर, जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थान तथा राज्य का ग्रीष्मकालीन शैलावास है। अरावली श्रेणियों के अत्यंत दक्षिण-पश्चिम छोर पर ग्रेनाइट शिलाओं के एकल पिंड के रूप में स्थित आबू पर्वत पश्चिमी बनास नदी की लगभग १० किमी संकरी घाटी द्वारा अन्य श्रेणियों से पृथक् हो जाता है। पर्वत के ऊपर तथा पार्श्व में अवस्थित ऐतिहासिक स्मारकों, धार्मिक तीर्थमंदिरों एवं कलाभवनों में शिल्प-चित्र-स्थापत्य कलाओं की स्थायी निधियाँ हैं। यहाँ की गुफा में एक पदचिहृ अंकित है जिसे लोग भृगु का पदचिह् मानते हैं। पर्वत के मध्य में संगमरमर के दो विशाल जैनमंदिर हैं।

राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित अरावली की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती सैलानियों को अपनी ओर खींचती है। 1190ई के दौरान आबू का शासन राजा जेतसी परमार भील के हाथो में था। बाद में आबू भीम देव द्वितीय के शासन का क्षेत्र बना। माउंट आबू चौहान साम्राज्य का हिस्सा बना। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों का पसंदीदा स्थान था।

इतिहास

माउंट आबू प्राचीनकाल से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। महर्षि वशिष्ठ ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहां यज्ञ का आयोजन किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूजनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र 'आरबुआदा' के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी।
प्राकृतिक सुषमा और विभोर करनेवाली वनस्थली का पर्वतीय स्थल 'आबू पर्वत' ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास स्थल और पश्चिमी भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र रहा है। यह स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के साथ एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी है। यहाँ वास्तुकला का हस्ताक्षरित कलात्मकता भी दृष्टव्य है। आबू का आकर्षण है कि आए दिन मेला, हर समय सैलानियों की हलचल चाहे शरद हो या ग्रीष्म। दिलवाड़ा मंदिर यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। माउंट आबू से १५ किलोमीटर दूर गुरु शिखर पर स्थित इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथंकरों को समर्पित हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियाँ भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। दिलवाड़ा के मंदिरों से ८ किलोमीटर उत्तर पूर्व में अचलगढ़ किला व मंदिर तथा १५ किलोमीटरदूर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर स्थित हैं। इसके अतिरिक्त माउंट आबू में नक्की झील, गोमुख मंदिर, माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य आदि भी दर्शनीय हैं।

आवागमन

माउंट आबू से निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहाँ से १८५ किलोमीटर दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुँचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएँ ली जा सकती हैं। समीपस्थ रेलवे स्टेशन आबू रोड २८ किलोमीटर की दूरी पर है जो अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है। माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं।

नक्की लेक

माउण्ट आबू के मध्य में स्थित ’नक्की लेक’ भारत की पहली मानव निर्मित झील है। लगभग 80 फ़ुट गहरी और 1/4 मील चौड़ी इस झील को देखे बिना, माउण्ट आबू की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। कई किंवदंतियों में से एक किंवदंती यह है कि इस झील को देवताओं ने अपने नाख़ूनों से खोद कर बनाया था इसी लिए इसका नाम नक्की ( नख यानी नाख़ून) झील पड़ा तथा एक किंवदंती यह है कि ऐसा माना जाता है कि नक्की झील गरासिया जनजाति के लिए बहुत पवित्र झील मानी जाती है; परन्तु इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस स्थान का दर्शन लाभ आपको प्रकृति और प्राकृतिक दृश्यों के नजदीक लाता है। जब आप नक्की झील में नाव की सैर करते हैं तो मंत्रमुग्ध करने वाली पहाड़ियाँ, आश्चर्यजनक, अद्भुत आकार की शिलाएं और हरी भरी वादियों से भरपूर नज़ारे आपको अभिभूत कर देते हैं। इसी नक्की झील के पास सन् 1984 में स्व० महात्मा गांधी की अस्थियों का कुछ अंश भी प्रवाहित किया गया था। जिसके बाद गांधी घाट का निर्माण किया गया। प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफर्स के लिए झील का साफ सुथरा नीला पानी, हरी भारी वादियां और चारों तरफ की प्राकृतिक छठा ,रूमानी, कल्पित तथा अद्भुत अंश ,स्वप्निल और तृप्त करने वाले हैं तथा इस आकर्षण भरे स्थल को देखने को बाध्य करते हैं।

गुरू शिखर

अरावली की पहाड़ियों का सबसे ऊँचा शिखर गुरू-शिखर की चोटी है। आध्यात्मिक कारणों तथा के साथ ही, 1772 मीटर समुद्रतल से ऊपर गुरू शिखर से माउण्ट आबू का विहंगम दृश्य देखने के लिए, प्रकृति की छठा को निहारने के लिए गुरू शिखर की यात्रा अनुपम है। गुरू शिखर पर चढ़ने से पहले, भगवान दत्तात्रेय का मंदिर दिखाई देता है, जिसके लिए माना जाता है कि भगवान, ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ऋषि आत्रे और उनकी पत्नी अनूसुइया को दत्तात्रेय के रूप में एक पुत्र प्रदान किया था। वैष्णव समुदाय के लिए यह एक तीर्थ स्थल है। यह दत्तात्रेय का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। पास में ही एक अन्य मंदिर है जो कि महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या को समर्पित है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक बड़ा पीतल का घंटा लटका हुआ है जिस पर 1141 ई. उत्कीर्ण है। पुराने असली घंटे के खराब हो जाने के कारण, यह नया घंटा लगाया गया है जिसकी झन्कार दूर-दूर तक सुनाई देती है। यह एक आम बात है कि यहाँ आने वाला प्रत्येक दर्शक इस घंटे तक पहुँच कर, इसे बजाना चाहता है तथा इसकी आवाज की मधुर लहरी को महसूस करना चाहता है।

टोड रॉक व्यू प्वाइंट

अजीबो-गरीब चट्टानों से घिरी नक्की लेक दर्शकों के लिए बहुत से आयाम प्रस्तुत करती है। नक्की लेक का सर्वाधिक प्रसिद्ध स्थल टोड रॉक व्यू प्वाइंट को माना जाता है। माउण्ट आबू के ‘शुभंकर’ के रूप में पहचान बनाने वाला टोड रॉक व्यू प्वाइंट झील के पास की पगडंडी पर स्थित है। टोड यानी मेंढक के आकार में प्राकृतिक रूप से बनी यह विशालकाय चट्टान अग्निमय चट्टानों में से एक है। पूरे हिल स्टेशन में यह स्थान, दर्शकों के लिए सर्वप्रिय है तथा बड़ी उत्सुकता से लोग इसे देखने आते हैं। इस पर चढ़ना आसान है तथा अधिकतर नवविवाहित व बच्चे इसके पास खड़े होकर फोटो ज़रूर खिंचवाते हैं। यहाँ से नक्की लेक तथा आसपास के सुरम्य वातावरण और हरियाली को निहारना अद्भुत लगता है। आपको यहाँ आने पर इस चट्टान को देखने के साथ ही लुभावने परिदृश्यों का अनुभव भी सुकून देगा।

दिलवाड़ा जैन मन्दिर

पूरे विश्व में माउण्ट आबू के जैन मंदिरों की तीर्थ यात्रा महत्वपूर्ण मानी जाती है। बाहर से साधारण सा दिखने वाला यह मंदिर, भीतर पहुँचने पर आपको अद्वितीय वास्तुशिल्प और इसमें की गई पत्थरों पर शानदार नक्काशी से अचम्भित कर देगा। इसकी आंतरिक सज्जा में कलाकारों की बेहतरीन कारीगरी दिखाई पड़ती है। इस मंदिर को 12वीं-13वीं शताब्दी में बनाया गया था तथा इसकी छतों, मेहराबों और खम्भों पर की गई कारीगरी को देखकर आप ठगे से रह जाएंगे। दिलवाड़ा के मंदिरों की अपरिभाषित सुन्दरता और मंदिर के आस पास का हरियाली से भरपूर शांत वातावरण लाजवाब है। इस मंदिर को 5 भागों में बांटा गया है।

माउण्ट आबू अभ्यारण्य

राजस्थान में वन्यजीव अभ्यारण्यों की कमी नहीं है और उनमें से यह एक महत्वपूर्ण अभ्यारण्य है ’माउण्ट आबू अभ्यारण्य’। अरावली की सबसे प्राचीन पर्वतमाला के पार, यह अभ्यारण्य काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है तथा बड़ी संख्या में वन्यजीवों का घर है। माउण्ट आबू में आने वाले दर्शकों के लिए इस अभ्यारण्य में विभिन्न प्रजाति के पेड़-पौधे, फूलों के वृक्ष तथा विविध पक्षियों की प्रजातियाँ भी देखी जा सकती हैं, जो कि इस स्वर्ग समान प्राकृतिक स्थल को परितंत्र अनुकूल पर्यटक स्थल बनाती हैं। माउण्ट आबू की पहाड़ियों के निचले स्तर पर जहाँ कांटेदार झाड़ियाँ, उप उष्ण कटिबंधीय जंगली पेड़ मिलते हैं, वहीं ऊपरी हिस्से में हरे-भरे जंगल भी हैं। यह लुप्तप्राय पशुओं का घर है तथा इसमें चीते, गीदड़, भालू, जंगली सुअर, लंगूर, साल (बड़ी छिपकली), खरगोश, नेवला, कांटेदार जंगली चूहा आदि भी पाए जाते हैं। लगभग 250 प्रकार के पक्षी भी इस अभ्यारण्य को पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग बनाते हैं।

पीस पार्क, माउण्ट आबू

अरावली पवर्तमाता की दो प्रसिद्ध चोटियों गुरू शिखर और अचलगढ़ के बीच में बसा है पीस पार्क, जो कि ब्रह्म कुमारियों के प्रतिष्ठान का ही एक भाग है। यह पार्क शांतिपूर्ण परिवेश और प्रशांत व निस्तब्ध वातावरण के साथ ही सुन्दर पृष्ठभूमि में सुकून भरा जीवन प्रदान करता है। पीस पार्क में आकर आप रॉक-गार्डन देख सकते हैं जिसमें बहुत सारी विविध प्रजाति के पेड-पौधे - कैक्टसी (नागफनी), ऑरचार्ड (फल वाटिका), सिट्रस कॉर्नर (नींबू, संतरे आदि के पेड़) तथा साथ में विभिन्न फूलों की बहार भी दिखाई देती है जैसे कोलियस, श्रब्स (झाड़ियां) हिबिस्कस, क्रीपर्स (लताएं) और पेड़ों पर चढ़ने वाली बेलें तथा एक अति सुन्दर रोज़ गार्डन (गुलाब के फूलों का बग़ीचा)। पार्क में और भी कई अन्य क्षेत्र हैं जैसे स्टोन केव (पत्थर की गुफा) तथा झोपड़ियां, जहाँ लोग शांतमय वातावरण में ध्यान लगा सकते हैं। इस पार्क का एक निर्देशित ट्यूर ब्रह्म कुमारियों द्वारा भी कराया जाता है और आप एक छोटी विडियों फिल्म भी देख सकते हैं, जिसमें योगा और ध्यान लगाने के मनोरंजक तरीके बताए गए हैं। इस एंकातमय, शांत स्थल पर प्रकृति की गोद में आपको यह अनुभव अवश्य लेना चाहिए।

लाल मंदिर, माउण्ट आबू

दिलवाड़ा या देलवाड़ा रोड पर, देलवाड़ा जैन मंदिर के समीप ही यह छोटा मंदिर है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर बहुत ही शांतिपूर्ण परिवेश प्रदान करता है और माउण्ड आबू में स्थित सभी पवित्र स्थलों में से सबसे ज्यादा पुराना माना जाता है। इस छोटे और संुदर मंदिर ‘लाल मंदिर’ के नाम के पीछे यह तथ्य है कि इसकी सभी दीवारंे लाल रंग में पेन्ट की हुई हैं। भक्तों तथा धार्मिक आस्था रखने वाले पर्यटकों के लिए, माउण्ट आबू में यह स्थल अवश्य देखने लायक़ है। यह मंदिर ‘स्वयंम्भू शिव मंदिर’ होने के कारण काफी अधिक प्रचलित है तथा इसका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिव भगवान की मूर्ति को जनेऊ धारण किए हुए देखा जा सकता हैं।

अर्बुदा देवी मंदिर

यह मंदिर राजस्थान राज्य की समृद्ध स्थापत्य विरासत एक प्रमाण है। अर्बुदा देवी को कात्यायनी देवी का अवतार माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि इस जगह पर माता पार्वती के होंठ गिरे थे, जिसकी वजह से इस मंदिर को अधर शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है।

सनसेट पॉइंट

सनसेट पॉइंट माउंट आबू का शाम के पर्यटन का प्रमुख आकर्षण है जो नक्की झील के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। इस स्थान की पृष्ठभूमि में सुंदर पहाड़ हैं, जो देखने में सुंदर लगते हैं, विशेषत: सूर्यास्त के समय। गर्मियों के मौसम में यह स्थान पर्यटन का एक लोकप्रिय आकर्षण रहता है क्योंकि बड़ी संख्या में यात्री इस स्थान के आरामदायक ठंडे परिवेश का आनंद उठाने के लिए यहाँ आते हैं। शॉपिंग में रूचि रखने वाले लोग पास स्थित हनीमून पॉइंट पर जा सकते हैं जो अपनी शिल्पकृतियों और खाने के स्थानों के लिए प्रसिद्द है

अचलगढ़ किला

अचलगढ़ किला व मंदिर- दिलवाड़ा के मंदिरों से ८ किलोमीटर उत्तर पूर्व में यह किला और मंदिर स्थित हैं। अचलगढ़ किला मेवाड़ के राजा राणा कुंभ ने एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। पहाड़ी के तल पर १५वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव के पैरों के निशान हैं। समीप ही १६वीं शताब्दी में बने काशीनाथ जैन मंदिर भी हैं।

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