मिल्खा सिंह का जीवन परिचय
कॉमनवेल्थ गेम्स में हमारे भारत देश को स्वर्ण पदक दिलाने वाले प्रथम भारतीय धावक जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया अब आप समझ गए होंगे कि हम भारत के सम्मानित व प्रसिद्ध धावक मिल्खा सिंह के बारे में बात कर रहे हैं इन्हें “फ्लाइंग सिख” के नाम से भी जाना जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी भी मिल्खा से काफी प्रभावित थे और आज की युवा पीढ़ी भी उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानती है और उनके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करती है। तो यदि आप भी ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं तो आप इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें और मिल्खा सिंह के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करें।
प्रारंभिक जीवन
इनका जन्म भारत-पाकिस्तान के विभाजन के पहले पंजाब के लायलपुर में सिख राठौर परिवार में 20 नवंबर 1929 को हुआ। इनके 15 भाई-बहन में से यह भी एक थे, इनके कुछ भाई-बहन बचपन में ही गुजर गए और माता-पिता व बचे हुए भाई बहन को उन्होंने भारत-पाक विभाजन के वक्त हुए दंगों में खो दिया। (मिल्खा सिंह का परिवार) बाद में वे दिल्ली आकर अपनी एक बहन के यहां रहने लग गए इसके बाद कुछ वक्त वे दिल्ली के शाहदरा इलाके की एक बस्ती में रहने लगे। अपने परिवार को खोने के बाद उन्हें गहरा आघात लगा, उनके भाई मलखान ने उन्हें सेना में जाने का सुझाव दिया और भाई का सुझाव मानकर उन्होंने सेना में जाने का निर्णय ले लिया। वे लगातार तीन बार फेल हो गए परंतु उन्होंने कोशिश नहीं छोड़ी और चौथे प्रयास में 1951 में कामयाब हो गए। (मिल्खा सिंह सेना में) सेना भर्ती के समय क्रॉस कंट्री रेस में छठा स्थान प्राप्त किया इस कारण मिल्खा को खेलकूद में विशेष प्रशिक्षण के लिए चुना गया।
करियर की शुरुआत
सेना में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ और कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर जीत हासिल की। मेलबर्न ओलंपिक खेल 1956 में भारत की ओर से 200 व 400 मीटर में भाग लिया लेकिन अनुभव ना होने से असफल रहे। 400 मीटर प्रतियोगिता के विनर चार्ल्स जेंकिंस से मिल्खा की मुलाकात हुई और उन्होंने उन्हें ट्रेनिंग के कई नए तरीके बताएं और उन्हें प्रेरित भी किया। (मिल्खा सिंह के करियर की शुरुआत) 1958 में कार्डिक वेल्स संयुक्त साम्राज्य के कॉमनवेल्थ खेल में स्वर्ण पदक जीता और इसी जीत के बाद उन्हें सभी उनके लंबे बाल , दाढ़ी, और अच्छे प्रदर्शन के लिए पहचानने लगे।इसके पश्चात उन्हें पाकिस्तान की तरफ से दौड़ने का बुलावा भेजा गया जिसे उन्होंने बिना मन के स्वीकार किया और बड़ी आसानी से दौड़ में जीत हासिल कर ली। उनके इस बेहतरीन प्रदर्शन के बाद उन्हें “फ्लाइंग सिख” की उपाधि दी गई।
ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेल में सन 1958 में 400 मीटर की। दौड़ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाली आजाद भारत के प्रथम खिलाड़ी बने। (Milkha Singh biography in hindi) 1960 में उन्होंने पाकिस्तान के फेमस धावक अब्दुल बासित को हराया जिसके बाद उन्हें अयूब खान ने “उड़न सिख” का नाम दे दिया। भारत का सर्वश्रेष्ठ व सफल धावक उन्हें 1 जुलाई 2012 को माना गया क्योंकि अब तक वे ओलंपिक खेल में 20 के आसपास मेडल जीत चुके थे और अपनी जीत का डंका संपूर्ण भारत में बजा चुके थे।
शादी
मिल्खा निर्मल कौर से 1955 में श्रीलंका में मिले। उन्होंने 1962 में निर्मल कौर से विवाह किया जो कि ‘भारतीय महिला वॉलीबॉल की पूर्व कप्तान’ रह चुकी है। इनके बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है जो कि प्रसिद्ध ‘गोल्फ खिलाड़ी’ है तथा उनकी तीन बेटियां हैं। टाइगर हिल के युद्ध में शहीद हुए हवलदार विक्रम सिंह के 7 साल के बेटे को 1999 में उन्होंने गोद ले लिया।
हार से जीत का खेल
मिल्खा अभी खेलों से जुड़े हुए थे और लगातार जीत भी रहे थे कि तभी रियो ओलंपिक खेल शुरू हो गए एवं सभी यही सोच रहे थे कि इस बार भी वे स्वर्ण पदक जरूर जीतेंगे लेकिन वे कोई पदक नहीं जीते और चौथे स्थान पर आए।
इस बार 400 मीटर की दौड़ में उन्होंने पिछले खेल (फ्रांस में 45.8 सेकंड) का रिकॉर्ड तो थोड़ा परंतु कोई पदक नहीं जीते। (मिल्खा सिंह का जीवन परिचय) वे 250 मीटर तक सबसे आगे रहे फिर पीछे मुड़कर दूसरे प्रतियोगी को देखने लगे और इस चक्कर में खुद पिछड़ गए। उन्हें इस बात का पछतावा अपने पूरे जीवन में रहा कि जो स्वर्ण जीत सकता वह कांस्य पदक भी ना जीत पाया और इस हार ने उन्हें अंदर से इतना कमजोर बना दिया कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने तक का मन बना लिया सभी के समझाने पर उन्होंने अपना फैसला बदला और दौड़ में वापसी की। (खेल में हार कर फिर जितने की कहानी)
खेल से सन्यास
टोक्यो एशियाई खेलों में पूर्ण आशा के साथ 200 और 400 मीटर की दौड़ में भाग लेकर जीत हासिल कर भारतीय एथलेटिक्स के लिए नया इतिहास रचा। 400 मीटर की दौड़ के वक्त वे थोड़े तनाव में थे जो पिस्तौल की आवाज के साथ खत्म हुआ और पूरे जोश से दौड़कर उन्होंने नया रिकॉर्ड बना दिया। (मिल्खा सिंह का खेल में प्रदर्शन) 200 मीटर की दौड़ शुरू हुई उनका मुकाबला पाकिस्तान के अब्दुल खालिक के साथ था जो कि 100 मीटर के विजेता थे। उन दोनों के कदम बराबर चल रहे थे और मुकाबला टक्कर का हो गया, फिनिशिंग लाइन के 3 मीटर पहले ही मिल्खा के टांग की मांसपेशियां खींची और वे गिर पड़े बाद में फोटो फिनिश से विजय घोषित हुए।
इस जीत के साथ एशिया के सबसे श्रेष्ठ एथलीट भी बन गए, जापान के सम्राट ने उन्हें स्वर्ण पदक पहनाया और कहा कि ‘दौड़ना जारी रखो दौड़ते रहोगे तो विश्व में सबसे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सकते हो’। (मिल्खा सिंह का खेल से सन्यास) कुछ वक्त बाद उन्होंने खेल से संन्यास लेकर भारत सरकार के साथ खेल में प्रोत्साहन के लिए सहयोग करना शुरू कर दिया, इस पद से वे 1998 में सेवानिवृत्त हुए।
फ्लाइंग व उड़न सिख की मृत्यु
भारत के मशहूर, सुप्रसिद्ध एथलीट, खिलाड़ी और युवाओं की जान मिल्खा सिंह मई महीने में कोरोना (कोविड-19) से संक्रमित हुए जिससे थोड़े समय में उनकी सेहत में सुधार देखने को मिला।
कोरोना नामक रोग से संक्रमण होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया और तबीयत में सुधार भी हुआ परंतु जून महीने में अचानक उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई और 18 जून 2021 को रात्रि 11:30 पर महान एथलीट ने अपनी सांसे रोक ली और इस दुनिया से विदा ले ली। (मिल्खा सिंह की मृत्यु)
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