कांचीपुरम: मंदिरों और सिल्क का शहर

तमिल नाडु राज्य कांचीपुरम शहर का इतिहास

Jan 11, 2023 - 08:13
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कांचीपुरम: मंदिरों और सिल्क का शहर
तमिल नाडु राज्य कांचीपुरम शहर का इतिहास

कांचीपुरम (Kanchipuram), जिसे केवल कांची (Kanchi) भी कहा जाता है, भारत के तमिल नाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। कांची हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ है और यहाँ बहुत प्राचीन मंदिर हैं। यह हिन्दू धार्मिक शिक्षा का भी शताब्दियों से केन्द्र रहा है। कांची पलार नदी के किनारे स्थित है। यह अपनी रेशमी साडि़यों के लिए भी प्रसिद्ध है। कांचीपुरम तमिल नाडु की राजधानी, चेन्नई, के बृहत-महानगर क्षेत्र में आता है।

नामार्थ
कांची का अर्थ (ब्रह्मा), आंची का अर्थ (पूजा) और पुरम का अर्थ (शहर) होता है यानी ब्रह्मा को पूजने वाला पवित्र स्थान। शायद इसलिए यहाँ विष्णु के अनेक मंदिर स्थापित किए गये हैं, जिस कारण इसे यह नाम दिया गया है।


सप्त पुरियों में गणना
मान्यता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्माजी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था। ऐसा माना जाता है कि जो भी यहाँ जाता है, उसे आंतरिक आनंद के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मोक्षदायिनी सप्त पुरियों अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया(हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) में कांचीपुरम की भी गणना है। कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। पुराणों मे कहा गया है कि: "पुष्पेशु जाति, पुरुषेशु विष्णु, नारीशु रम्भा, नगरेशु कांची।"


साड़ियाँ
कांची अपनी रेशम की बनी साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। यह हाथों द्वारा बनाई जाती हैंएवं उच्च कोटि की गुणवत्त होती हैं। इसीलिये, प्रायः सभी तमिल संभ्रांत परिवार की महिलाओं की साडि़यों केएक ना एक तो "कांजीवरम" होती ही है। इनका उत्तर भारत में भी खूब मूल्य होता है।

मुख्य पर्यटन स्थल
यहाँ कई बडे़ मन्दिर हैं, जैसे वरदराज पेरुमल मन्दिर भगवान विष्णु के लिये, भगवान शिव के पांच रूपों में से एक को समर्पित एकाम्बरनाथ मन्दिर, कामाक्षी अम्मन मन्दिर, कुमारकोट्टम, कच्छपेश्वर मन्दिर, कैलाशनाथ मन्दिर, इत्यादि। उत्तरी तमिलनाडु में स्थित कांचीपुरम भारत के सात सबसे पवित्र शहरों में एक माना जाता है। हिन्दुओं का यह पवित्र तीर्थस्थल हजार मंदिरों के शहर के रूप में चर्चित है। आज भी कांचीपुरम और उसके आसपास 126 शानदार मंदिर देखे जा सकते हैं। यह शहर चैन्नई से 45 मील दक्षिण पश्चिम में वेगवती नदी के किनार बसा है। कांचीपुरम प्राचीन चोल और पल्लव राजाओं की राजधानी थी।


कैलाशनाथ मंदिर
शहर के पश्चिम दिशा में स्थित यह मंदिर कांचीपुरम का सबसे प्राचीन और दक्षिण भारत के सबसे शानदार मंदिरों में एक है। इस मंदिर को आठवीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने अपनी पत्नी की प्रार्थना पर बनवाया था। मंदिर के अग्रभाग का निर्माण राजा के पुत्र महेन्द्र वर्मन तृतीय के करवाया था। मंदिर में देवी पार्वती और शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दर्शाया गया है।


बैकुंठ पेरूमल मंदिर
भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदीवर्मन पल्लवमल्ला ने करवाया था। मंदिर में भगवान विष्णु को बैठे, खड़े और आराम करती मुद्रा में देखा जा सकता है। मंदिर की दीवारों में पल्लव और चालुक्यों के युद्धों के दृश्य बने हुए हैं। मंदिर में 1000 स्तम्भों वाला एक विशाल हॉल भी है जो पर्यटकों को बहुत आकषित करता है। प्रत्येक स्तम्भ में नक्काशी से तस्वीर उकेरी गई हैं जो उत्तम कारीगर की प्रतीक हैं।


कामाक्षी अम्मन मंदिर

यह मंदिर देवी शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में एक है। मदुरै और वाराणसी अन्य दो पवित्र स्थल हैं। 1.6 एकड में फैला यह मंदिर नगर के बीचोंबीच स्थित है। मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुनरोद्धार 14 वीं और 17वीं शताब्दी में करवाया गया। कहा गया है कि:

कांची तु कामाक्षी, मदुरै मिनाक्षी, दक्षिणे कन्याकुमारी ममः।
शक्ति रूपेण भगवती, नमो नमः नमो नमः॥
यह मंदिर कांचीपुरम के शिवकांची में स्थित है। कामाक्षी देवी मंदिर देश की 51 शक्ति पीठों में संमिलित है। मंदिर में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा है। यह भी कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता हैं। इष्टदेवी देवी कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने की बजाय बैठी हुई मुद्रा में हैं। देवी पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठी हैं और दक्षिण-पूर्व की ओर देख रही हैं।

मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चंपक का वृक्ष हुआ करता था। मां कामाक्षी के भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसे कामाक्षीदेवी या कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह एक मंदिर है। इस मंदिर परिसर के अंदर चारदीवारी के चारों कोनों पर निर्माण कार्य किया गया है। एक कोने पर कमरे बने हैं तो दूसरे पर भोजनशाला, तीसरे पर हाथी स्टैंड और चौथे पर शिक्षण संस्थान बना है। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी मंदिर में आदिशंकराचार्य की काफी आस्था थी। उन्होंने ही सबसे पहले मंदिर के महत्व से लोगों को परिचित कराया। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।

यह भी कहा जाता है कि देवी कामाक्षी के नेत्र इतने सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वास्तव में कामाक्षी में मात्र कमनीयता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्व भी है। यहां पर 'क' कार ब्रह्मा का, 'अ' कार विष्णु का और 'म' कार महेश्वर का प्रतीक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' सरस्वती का, 'मां' महालक्ष्मी का प्रतीक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है। खुलने का समय: मंदिर सुबह 5.30 बजे खुलता है और दोपहर 12 बजे बंद हो जाता है। फिर शाम को 4 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद हो जाता है। ब्रह्मोत्सव और नवरात्रि मंदिर के खास त्योहार हैं।


वरदराज मंदिर
भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में उन्हें देवराजस्वामी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में 100 स्तम्भों वाला एक हाल है जिसे विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। यह मंदिर उस काल के कारीगरों की कला का जीता जागता उदाहरण है।


एकमबारानाथर मंदिर
यह अति प्राचीन ओर भव्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुर्ननिर्माण चोल और विजयनगर के राजाओं ने करवाया। 11 खंड़ों का यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में एक है। मंदिर में बहुत आकर्षक मूर्तियां देखी जा सकती हैं। साथ ही यहां का 1000 पिलर का मंडपम भी खासा लोकप्रिय है।

ग्रथों के अनुसार, यह मंदिर मे अनेक बरसों से एक आम का पेड़ है जो लगभग ३५००-४००० वर्ष पुराना है। इस पेड़ की हर शाखा पर अलग-अलग रंग के आम लगते है और इनका स्वाद भी अलग अलग है। इस पेड़ के नीचे माँ पार्वती ने भगवान महादेव शिव की पूजा की थी और माता पार्वती शिव जी को प्राप्त करने के लिए, उसी आम के पेड़ के नीचे मिटटी या बालू से ही एक शिवलिंग बना कर घोर तपस्या करनी शरू कर दी| जब शिवजी ने ध्यान मग्न पार्वती जी को तपस्या करते हए देखा तो महादेव ने माता पार्वती की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी जटा से गंगा जल को बहाना शुरू दिया। जल के तेज गति से पूजा मे बाधा पड़ने लगी तो माता पार्वती ने उस शिवलिंग जिसकी वह पूजा कर रही थी उसे गले लगा लिया जिसे से शिव लिंग को कोई नुकसान न हो। भगवान शंकर जी यह सब देख कर बहुत प्रस्सन हए और माता पार्वती को दर्शन दिये। शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने को कहा तो माता पार्वती ने विवाह की इच्छा व्यक्त की। महादेव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया। आज भी मंदिर के अंदर वह आम का पेड़ हरा भरा देखा जा सकता है। माता पार्वती और शिव जी को समर्पित यह मंदिर एकबारनाथ मंदिर है।

वेदानथंगल और किरीकिरी पक्षी अभयारण्य
यह दोनों पक्षी अभयारण्य कांचीपुरम के अंदरूनी भाग में स्थित हैं। वेदानथंगल 30 हेक्टेयर और किरीकिरी 61 हेक्टेयर में फैला हुआ है। यह अभयारण्य बबूल और बैरिंगटोनिया पेड़ो से भर हुए हैं। इन अभ्यराण्य में पाकिस्तान, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और साइबेरियन पक्षियों को देखा जा सकता है। पिन्टेल्स, स्टिल्ट्स, गारगानी टील्स और सैंडपाइपर जसी पक्षियों की प्रजातियां यह नियमित रूप से देखी जा सकती हैं। इन दोनों अभ्यराण्य में तकरीबन 115 पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं।


यातायात
वायु मार्ग-
कांचीपुरम का निकटतम एयरपोर्ट चैन्नई है जो लगभग 75 किलोमीटर दूर है। चैन्नई से कांचीपुरम लगभग 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग-
कांचीपुरम का रेलवे स्टेशन चैन्नई, चेन्गलपट्टू, तिरूपति और बैंगलोर से जुड़ा है। यहाँ चेन्नई उपनगरीय रेलवे-दक्षिण लाइन का एक भी स्टेशन है।

सड़क मार्ग-
कांचीपुरम तमिलनाडु के लगभग सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। विभिन्न शहरों से कांचीपुरम के लिए नियमित अंतराल में बसें चलती हैं।

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