ईरान जम्बुद्वीप एशिया के दक्षिण-पश्चिम खंड में स्थित देश
ईरान जम्बुद्वीप एशिया के दक्षिण-पश्चिम खंड में स्थित देश है। इसे सन 1935 तक फारस (पर्शिया) नाम से भी जाना जाता है। इसकी राजधानी तेहरान है और यह देश उत्तर-पूर्व में तुर्कमेनिस्तान, उत्तर में कैस्पियन सागर और अज़रबैजान, दक्षिण में फारस की खाड़ी, पश्चिम में इराक (कुर्दिस्तान क्षेत्र) और तुर्की, पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान तथा पाकिस्तान से घिरा है। यहाँ का प्रमुख धर्म इस्लाम है तथा यह क्षेत्र शिया बहुल है।
प्राचीन काल में यह बड़े साम्राज्यों की भूमि रह चुका है। ईरान को 1979 में इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया था। यहाँ के प्रमुख शहर तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज़, मशहद इत्यादि हैं। राजधानी तेहरान में देश की 15 प्रतिशत जनता वास करती है। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात पर निर्भर है। फ़ारसी यहाँ की मुख्य भाषा है। ईरान में फ़ारसी, अजरबैजान, कुर्द (क़ुर्दिस्तान) और लूर सबसे महत्वपूर्ण जातीय समूह हैं
नाम
ईरान का प्राचीन नाम फ़ारस था। इस नाम की उत्पत्ति के पीछे इसके साम्राज्य का इतिहास शामिल है। बेबीलोन के समय (4,000-700 ईसापूर्व) तक पार्स प्रान्त इन साम्राज्यों के अधीन था। जब 550 ईस्वी में कुरोश ने पार्स की सत्ता स्थापित की तो उसके बाद मिस्र से लेकर आधुनिक अफ़गानिस्तान तक और बुखारा से फारस की खाड़ी तक ये साम्राज्य फैल गया। इस साम्राज्य के तहत मिस्री, अरब, यूनानी, आर्य (ईरान), यहूदी तथा अन्य कई नस्ल के लोग थे। अगर सबों ने नहीं तो कम से कम यूनानियों ने इन्हें, इनकी राजधानी पार्स के नाम पर, पारसी कहना आरम्भ किया। इसी के नाम पर इसे पारसी साम्राज्य कहा जाने लगा। यहाँ का समुदाय प्राचीन काल में हिन्दुओ की तरह सूर्य पूजक था यहाँ हवन भी हुआ करते थे लेकिन सातवीं सदी में जब इस्लाम धर्म आया तो अरबों का प्रभुत्व ईरानी क्षेत्र पर हो गया। अरबों की वर्णमाला में (प) उच्चारण नहीं होता है। उन्होंने इसे पारस के बदले फारस कहना चालू किया और भाषा पारसी के बदले फ़ारसी बन गई। यह नाम फ़ारसी भाषा के बोलने वालों के लिए प्रयोग किया जाता था।
ईरान (या एरान) शब्द आर्य मूल के लोगों के लिए प्रयुक्त शब्द एर्यनम से आया है, जिसका अर्थ है आर्यों की भूमि। हख़ामनी शासकों के समय भी आर्यम तथा एइरयम शब्दों का प्रयोग हुआ है। ईरानी स्रोतों में यह शब्द सबसे पहले अवेस्ता में मिलता है। अवेस्ता ईरान में आर्यों के आगमन (दूसरी सदी ईसापूर्व) के बाद लिखा गया ग्रंथ माना जाता है। इसमें आर्यों तथा अनार्यों के लिए कई छन्द लिखे हैं और इसकी पंक्तियाँ ऋग्वेद से मेल खाती है। लगभग इसी समय भारत में भी आर्यों का आगमन हुआ था। पार्थियन शासकों ने एरान तथा आर्यन दोनों शब्दों का प्रयोग किया है। बाहरी दुनिया के लिए 1935 तक नाम फ़ारस था। सन् 1935 में रज़ाशाह पहलवी के नवीनीकरण कार्यक्रमों के तहत देश का नाम बदलकर फ़ारस से ईरान कर दिया गया थ।
भौगोलिक स्थिति और विभाग
ईरान को पारम्परिक रूप से मध्यपूर्व का अंग माना जाता है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से यह मध्यपूर्व के अन्य देशों से जुड़ा रहा है। यह अरब सागर के उत्तर तथा कैस्पियन सागर के बीच स्थित है और इसका क्षेत्रफल 16,48,000 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग आधा है। इसकी कुल स्थलसीमा 5440 किलोमीटर है और यह इराक(1458 कि॰मी॰), अर्मेनिया(35), तुर्की(499), अज़रबैजान(432), अफग़ानिस्तान(936) तथा पाकिस्तान (906 कि॰मी॰) के बीच स्थित है। कैस्पियन सागर के इसकी सीमा सगभग 740 किलोमीटर लम्बी है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व में 18वें नम्बर पर आता है। यहाँ का भूतल मुख्यतः पठारी, पहाड़ी और मरुस्थलीय है। वार्षिक वर्षा 25 सेमी होती है।
समुद्र तल से तुलना करने पर ईरान का सबसे निचला स्थान उत्तर में कैस्पियन सागर का तट आता है जो 28 मीटर की उचाई पर स्थित है जबकि कूह-ए-दमवन्द जो कैस्पियन तट से सिर्फ 70 किलोमीटर दक्षिण में है, सबसे ऊँचा शिखर है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई 5,610 मीटर है।
इतिहास
माना जाता है कि ईरान में पहले पुरापाषाणयुग कालीन लोग रहते थे। यहाँ पर मानव निवास एक लाख साल पुराना हो सकता है। लगभग 5000 ईसापूर्व से खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया की सभ्यता के स्थल के पूर्व में मानव बस्तियों के होने के प्रमाण मिले हैं। ईरानी लोग (आर्य) लगभग 2000 ईसापूर्व के आसपास उत्तर तथा पूरब की दिशा से आए। इन्होंने यहाँ के लोगों के साथ एक मिश्रित संस्कृति की आधारशिला रखी जिससे ईरान को उसकी पहचान मिली। आधिनुक ईरान इसी संस्कृति पर विकसित हुआ। ये यायावर लोग ईरानी भाषा बोलते थे और धीरे धीरे इन्होंने कृषि करना आरंभ किया।
आर्यों का कई शाखाए ईरान (तथा अन्य देशों तथा क्षेत्रों) में आई। इनमें से कुछ मिदि, कुछ पार्थियन, कुछ फारसी, कुछ सोगदी तो कुछ अन्य नामों से जाने गए। मीदी तथा फारसियों का ज़िक्र असीरियाई स्रोतों में 836 ईसापूर्व के आसपास मिलता है। लगभग यही समय ज़रथुश्त्र (ज़रदोश्त या ज़ोरोएस्टर के नाम से भी प्रसिद्ध) का काल माना जाता है। हालाँकि कई लोगों तथा ईरानी लोककथाओं के अनुसार ज़रदोश्त बस एक मिथक था कोई वास्तविक आदमी नहीं। पर चाहे जो हो उसी समय के आसपास उसके धर्म का प्रचार उस पूरे प्रदेश में हुआ।
असीरिया के शाह ने लगभग 720 ईसापूर्व के आसपास इज़रायल पर अधिपत्य जमा लिया। इसी समय कई यहूदियों को वहाँ से हटा कर मीदि प्रदेशों में लाकर बसाया गया। 530 ईसापूर्व के आसपास बेबीलोन फ़ारसी नियंत्रण में आ गया। उसी समय कई यहूदी वापस इसरायल लौट गए। इस दोरान जो यहूदी मीदी में रहे उनपर जरदोश्त के धर्म का बहुत असर पड़ा और इसके बाद यहूदी धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया।
अर्थव्यवस्था
ईरान की अर्थव्यवस्था तेल और प्राकृतिक गैस से संबंधित उद्योगों तथा कृषि पर आधारित है। सन् 2006 में ईरान के बज़ट का 45 प्रतिशत तेल तथा प्राकृतिक गैस से मिले रकम से आया और 31 प्रतिशत करों और चुंगियों से। ईरान के पास क़रीब 70 अरब अमेरिकी डॉलर रिज़र्व में है और इसकी सालाना सकल घरेलू उत्पाद 206 अरब अमेरिकी डॉलर थी। इसकी वार्षिक विकास दर 6 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ ईरान एक अर्ध-विकसित अर्थव्यवस्था है। सेवाक्षेत्र का योगदान सकल घरेलू उत्पाद में सबसे ज्यादा है। देश के रोज़गार में 1.8 प्रतिशत रोजगार पर्यटन के क्षेत्र में है। वर्ष 2004 में ईरान में 16,59,000 पर्यटक आए थे। ईरान का पर्यटन से होने वाली आय वाले देशों की सूची में 89वाँ स्थान है पर इसका नाम सबसे ज्यादा पर्यटकों की दृष्टि से 10वें स्थान पर आता है।
ईरान संयुक्त राष्ट्र, पर्यावरण, NAM, ओ, और ओपेक के एक संस्थापक सदस्य है। यह एक प्रमुख क्षेत्रीय और मध्य शक्ति, है और जीवाश्म ईंधन, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति और चौथा सबसे बड़ा तेल सिद्ध शामिल हैं-के अपने बड़े भंडार सुरक्षित रखता है -अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और विश्व अर्थव्यवस्था में काफी प्रभाव डालती।
देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भाग में अपने 21 यूनेस्को विश्व धरोहर, दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी संख्या एशिया में और 11 वीं सबसे बड़ी द्वारा परिलक्षित होता है। ईरान कई जातीय और भाषाई समूहों, सबसे बड़ा होने के नाते फारसियों (61 प्रतिशत), जिसमें एक बहुसांस्कृतिक देश है Azeris (16 %), कुर्द (10 %), और Lurs (6 %).
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