चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का इतिहास और कहानी

सम्राट अशोक बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले प्रतापी राजा

Jan 2, 2023 - 08:21
Jan 2, 2023 - 14:56
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चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का इतिहास और कहानी
सम्राट अशोक विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट

सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। अशोक बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले प्रतापी राजा थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय ( देवताओं का प्रिय) अशोक था। उनका राजकाल ईसा पूर्व 269 से, 232 प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक राज्य का मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश, तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णगिरी पहाड़ी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल पाटलीपुत्र से पश्चिम में अफ़गानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान तक पहुँच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक' कहा जाता है, जिसका अर्थ है - ‘सम्राटों के सम्राट’, और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है।


सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध पन्थ का प्रचार किया। सम्राट अशोक के सन्दर्भ के स्तम्भ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी अन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है।


कलिंग युद्ध के दो वर्ष पहले ही सम्राट अशोक बुद्ध ने था जिससे से प्रभावित होकर बौद्ध अनुयायी हो गये और उन्ही की स्मृति में उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - में मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बौद्ध मन्दिर बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैण्ड, चीन इन देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़गानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे। सम्राट अशोक के समय तक्षशिला, नालन्दा, आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे। शिलालेख प्रारम्भ करने वाला पहला शासक बाद में आरम्भ हुआ था। अशोक ने सर्वप्रथम बौद्ध पन्थ का सिद्धान्त लागू किया जो आज भी कार्यरत है। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा आगे बढ़े।


चक्रवर्ती अशोक सम्राट बिन्दुसार तथा रानी धर्मा का पुत्र था। लंका की परम्परा में बिन्दुसार की सोलह पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं - सुसीम , जो सबसे बड़ा था, अशोक और तिष्य। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। एक दिन धर्मा को स्वप्न आया कि उसका बेटा एक बहुत बड़ा सम्राट बनेगा। उसके बाद उसे राजा बिन्दुसार ने अपनी रानी बना लिया। चूँकि धर्मा क्षत्रिय कुल से नहीं थी, अतः उसको कोई विशेष स्थान राजकुल में प्राप्त नहीं था। अशोक के कई (सौतेले) भाई -बहने थे। बचपन में उनमें कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती थी। अशोक के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से सैन्य गतिविधियों में प्रवीण था। दो हज़ार वर्षों के पश्चात्, सम्राट अशोक का प्रभाव एशिया मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में देखा जा सकता है। अशोक काल में उकेरा गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम 'अशोक चिह्न' के नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। बौद्ध पन्थ के इतिहास में गौतम बुद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक का ही स्थान आता है।


दिव्यदान में अशोक की एक पत्‍नी का नाम 'तिष्यरक्षिता' मिलता है। उसके लेख में केवल उसकी पत्‍नी 'करूणावकि' है। दिव्यादान में अशोक के दो भाइयों सुसीम तथा विगताशोक का नाम का उल्लेख है।
अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम उस समय तक्षशिला का प्रान्तपाल था। तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे। इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था। सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में विद्रोह पनप उठा। राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा। अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के खत्म हो गया। हालाकि यहाँ पर विद्रोह एक बार फिर अशोक के शासनकाल में हुआ था, पर इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया।


अशोक की इस प्रसिद्धि से उसके भाई सुशीम को सिंहासन न मिलने का संकट बढ़ गया। उसने सम्राट बिंदुसार को कहकर अशोक को निर्वास में डाल दिया। अशोक कलिंग चला गया। वहाँ उसे मत्स्यकुमारी कौर्वकी से प्रेम हो गया। वर्तमान में मिले साक्ष्यों के अनुसार बाद में अशोक ने उसे तीसरी या दूसरी रानी बनाया था। इसी बीच उज्जैन में विद्रोह हो गया। अशोक को सम्राट बिन्दुसार ने निर्वासन से बुला विद्रोह को दबाने के लिए भेज दिया। हलांकी उसके सेनापतियों ने विद्रोह को दबा दिया पर उसकी पहचान गुप्त ही रखी गई क्योंकि मौर्यों द्वारा फैलाए गए गुप्तचर जाल से उसके बारे में पता चलने के बाद उसके भाई सुशीम द्वारा उसे मरवाए जाने का भय था। वह बौद्ध सन्यासियों के साथ रहा था। इसी समय उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा शिक्षाओं का पता चला था। यहाँ पर एक सुन्दरी, जिसका नाम देवी था, उससे अशोक को प्रेम हो गया। स्वस्थ होने के बाद अशोक ने उससे विवाह कर लिया।


कुछ वर्षों के बाद सुशीम से तंग आ चुके लोगों ने अशोक को राजसिंहासन हथिया लेने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि सम्राट बिन्दुसार वृद्ध तथा रुग्ण हो चले थे। जब वह आश्रम में थे तब उनको समाचार मिला की उनकी माँ को उनके सौतेले भाईयों ने मार डाला, तब उन्होने राजभवन में जाकर अपने सारे सौतेले भाईयों की हत्या कर दी और सम्राट बने।


सत्ता संभालते ही अशोक ने पूर्व तथा पश्चिम, दोनों दिशा में अपना साम्राज्य फैलाना प्रारम्भ किया। उसने आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक साम्राज्य केवल आठ वर्षों में विस्तृत कर लिया।
चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के ८वें वर्ष (२६१ ई. पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया था। आन्तरिक अशान्ति से निपटने के बाद २६९ ई. पू. में उनका विधिवत्‌राज्याभिषेक हुआ। तेरहवें शिलालेख के अनुसार कलिंग युद्ध में १ लाख ५० सहस्र व्यक्‍ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिए गये, 1 लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। 1.5 लाख लोगो घायल हुए, सम्राट अशोक ने भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा। उपगुपत(बौद्ध भिक्षुक से उपाय पूछा। इससे द्रवित होकर सम्राट अशोक ने शान्ति, सामाजिक प्रगति तथा धार्मिक प्रचार किया।।


कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया। उनका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया। उन्होंने युद्धक्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग आरम्भ हुआ। उन्होंने महान बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया।


सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष में निगोथ नामक भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा दी गई थी। तत्पश्‍चात्‌मोगाली पुत्र निस्स के प्रभाव से वे पूर्णतः बौद्ध हो गये थे। दिव्यादान के अनुसार सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है। सम्राट अशोक अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी। तदुपरान्त अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्‍त घोषित कर दिया था।


सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।[ 


इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मगधी भाषा में पाली भाषा के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में भाषा संस्कृत से मिलती-जुलती है और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं।


अशोक ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया जिसके बाद लगभग 232 ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हुई। उसके कई संतान तथा पत्नियां थीं पर उनके बारे में अधिक पता नहीं है। उसके पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया।


अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य राजवंश लगभग 50 वर्षों तक चला।
मगध तथा भारतीय उपमहाद्वीप में कई जगहों पर उसके अवशेष मिले हैं। पटना (पाटलिपुत्र) के पास कुम्हरार में अशोककालीन अवशेष मिले हैं। लुम्बिनी में भी अशोक स्तंभ देखा जा सकता है। कर्नाटक के कई स्थानों पर उसके धर्मोपदेशों के शिलोत्कीर्ण अभिलेख मिले हैं।


मगध साम्राज्य के महान मौर्य सम्राट अशोक की मृत्यु २३७-२३६ ई. पू. में (लगभग) हुई थी। अशोक के उपरान्त अगले पाँच दशक तक उनके निर्बल उत्तराधिकारी शासन संचालित करते रहे।
जैन, बौद्ध तथा हिन्दू ग्रन्थों में अशोक के उत्तराधिकारियों के शासन के बारे में परस्पर विरोधी विचार पाये जाते हैं। पुराणों में अशोक के बाद ९ या १० शासकों की चर्चा है, जबकि दिव्यादान के अनुसार ६ शासकों ने अशोक के बाद शासन किया। अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य पश्‍चिमी और पूर्वी भाग में बँट गया। पश्‍चिमी भाग पर कुणाल शासन करता था, जबकि पूर्वी भाग पर सम्प्रति का शासन था। लेकिन १८० ई. पू. तक पश्‍चिमी भाग पर बैक्ट्रिया यूनानी का पूर्ण अधिकार हो गया था। पूर्वी भाग पर वृहद्रथ का राज्य था। वह मौर्य वंश का अन्तिम शासक है। सम्राट अशोक अपने समय के महान सम्राट थे उनकी होड कोई नहीं कर सकता

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