ग्वालियर मध्य प्रदेश के ग्वालियर किला का इतिहास तथा महत्वपूर्ण जानकारी
ग्वालियर का किला का संक्षिप्त विवरण
ग्वालियर क़िला देश के मध्य भाग में स्थित भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह क़िला मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में गोपांचल' नामक पर्वत पर स्थित है, जिसे शहर से बाहर से आसानी से देखा जा सकता है। यह किला केवल मध्य प्रदेश ही पूरे भारत में मशहूर ऐतहासिक संग्रहालयों में से एक है।
ग्वालियर का किला का इतिहास
इतिहास में दर्ज आकंड़ों के अनुसार इस क़िले का निर्माण 8वीं शताब्दी में सूर्यसेन नामक एक सरदार ने करवाया था, परन्तु 15वीं शताब्दी में राजा मानसिंह तोमर ने ग्वालियर किले को वर्तमान स्वरूप दिया। इस किले पर कई राजपूत वंशो ने राज किया है, किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश के राजाओं ने शासन किया था। इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया। 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।
12वीं शताब्दी में गुलाम वंश का स्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया, लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया। इसके बाद महाराजा देववरम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की। इस वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे मानसिंह (1486-1516) जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गुजारी महल बनवाया, 1398 से 1505 ईस्वी तक इस किले पर तोमर वंश का राज रहा।
राजा मानसिंह ने 16 सदी के दौरान इब्राहिम लोदी की अधीनता स्वीकार ली थी। लोदी की म्रत्यु के बाद जब मानसिंह के बेटे विक्रमादित्य को बाबर के बेटे हुमायूं ने दिल्ली दरबार में बुलाया तो उन्होंने वहा आने से मन कर दिया। इसके बाद बाबर ने ग्वालियर पर हमला कर इसे अपने कब्जे में लिया और इस पर राज किया, लेकिन शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराकर इस किले को सूरी वंश के अधीन किया।
साल 1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा। वर्ष 1779 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा। हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंतत: सिंधिया के कब्जे में आ गया।
ग्वालियर का किला के रोचक तथ्य
मध्य प्रदेश में ग्वालियर जिले में स्थित यह किला 2 भागों में बंटा हुआ है। पहला भाग है गुजरी महल और दूसरा मन मंदिर।
किले के पहले भाग गुजरी महल को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गाया था।
मन मंदिर में ही “शून्य” से जुड़े हुए सबसे पुराने दस्तावेज किले के ऊपर जाने वाले रास्ते के मंदिर में मिले थे, जो लगभग 1500 साल पुराने थे।
इस किले को मुगल शासनकाल के दौरान एक जेल के रूप में इस्तेमाल किया गया था। किला शाही लोगों के लिए राजनीतिक जेल था।
देश के इतिहास में इस क़िले का बहुत महत्व रहा है। ग्वालियर क़िले को ‘हिन्द के क़िलों का मोती’ भी कहा जाता है।
इस किले का निर्माण लाल बलुए पत्थर से किया गया था, जोकि शहर की हर दिशा से दिखाई देता है।
8वीं शताब्दी में निर्मित इस किले की ऊंचाई तीन वर्ग किलोमीटर से अधिक फैली हुई है और इसकी ऊंचाई 35 फीट है।
इसकी दीवारें पहाड़ के किनारों से बनाई गई है एवं इसे 6 मीनारों से जोड़ा गया हैं। इसमें दो दरवाज़े हैं एक उत्तर-पूर्व में और दूसरा दक्षिण-पश्चिम में।
किले में अन्दर जाने के लिए दो रास्ते हैं: पहला ग्वालियर गेट, जिस पर केवल पैदल ही जाया जा सकता है, जबकि दूसरा रास्ता ऊरवाई गेट है, जिस पर आप गाड़ी के द्वारा भी जा सकते हैं।
किले का मुख्य प्रवेश द्वार को हाथी पुल के नाम से भी जाना जाता है, जो सीधा मान मंदिर महल की ओर ले जाता है एवं दूसरे द्वार का नाम बदालगढ़ द्वार है।
किले में कई ऐतिहासिक स्मारक, बुद्ध और जैन मंदिर, महल (गुजारी महल, मानसिंह महल, जहांगीर महल, करण महल, शाहजहां महल) मौजूद हैं।
इस किले में भीतर स्थित गुजारी महल को अब पुरातात्विक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। जिसमें इतिहास से सम्बंधित दुर्लभ मूर्तियां रखी गई हैं, ये मूर्तियां यहीं के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं।
किले में अन्दर आप तेली का मंदिर, 10वीं सदी में बना सहस्त्रबाहु मंदिर, भीम सिंह की छतरी और सिंधिया स्कूल आदि भी देखने का आनंद उठा सकते हैं।
कोहिनूर हीरा, जोकि वर्तमान में ब्रिटेन में पाया जाता है, इस हीरे का अंतिम संरक्षक ग्वालियर का राजा था। यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था।
एक तामचीनी वृक्ष किले के परिसर के अंदर खड़ा है, जिसे अपने समय के महान संगीतकार तानसेन द्वारा लगाया गया था।
What's Your Reaction?