पूर्व भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी दिलीप टिर्की

Jan 12, 2023 - 14:08
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पूर्व भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी दिलीप टिर्की
पूर्व भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी दिलीप टिर्की

दिलीप टिकी को हिन्दुस्तानी हॉकी का गोल्डन ब्यॉय भी कहा जाता है । भारतीय टीम के कप्तान होने के सारे गुण इनमें मौजूद हैं । विवादों से परे होकर संयम, धैर्य और अनुशासन से खेलने वाले ये श्रेष्ठ खिलाड़ी हैं । इनकी कहानी एक निर्धन परिवार से भारतीय हॉकी टीम के कप्तानी तक पहुंचाने वाले ऐसे सफर की कहानी है, जो इन्हें मुम्बइ या फिल्म की कहानी का हीरो बनाती है ।

प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां:

दिलीप  टिर्की भारत के मध्य प्रान्त में एक निर्धन, आदिवासी परिवार में जन्मे हैं । इनका जन्म सुन्दरगढ़ जिले के सोनामरा नामक गांव में हुआ था । इनके पिता विन्सेंट रिजर्व पुलिस बल में एक सिपाही हैं, जो वक्त मिलते ही अपने साथ रिटक लेकर खेलने निकल पड़ते थे ।

यहीं से टिकी का लगाव स्टिक से इतना बढ़ा कि इन्हें पढ़ाई छोड़कर हॉकी ही रास आयी । इनकी प्रेरणा इनके पिता तथा टी॰वी॰ में दिखाये जाने वाले मैच रहे है । जब इन्होंने पहली बार टी॰वी॰ पर हॉकी मैच देखा, जिसमें भारत की जीत हुई थी, वह मैच इनके जेहन पर छाया रहा । खिलाड़ी बनने की चाह में इन्होंने 1987 की प्रतिभा खोज योजना में भाग लिया, किन्तु इनका चयन नहीं हो पाया ।

अगले वर्ष 1988 में इन्हें ”स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इण्डिया” साई ने बुलावा भेजा । यहाँ श्रेष्ठ प्रशिक्षकों के निर्देशन गे खेल की तैयारी करने लगे । ए०के० बसंल कोच ने तो इनकी प्रतिभा को विशेष निखारा । 1992-93 में ये उड़ीसा की टीम लेकर बीकानेर में खेलने आये । इरा खेल में इनके उम्दा प्रदर्शन ने इन्हें देश में काफी ख्याति दिलायी । 1995 में इन्हें ”इण्डियन एयरलाइन्स” में नौकरी भी मिल गयी ।

इनके नेतृत्व में ‘एफ्रो-एशियाई’ टीम गोल्ड मेडल लेकर आयी । 27 वर्ष की अवस्था में इनके खाते में 250 से भी अधिक अन्तर्राष्ट्रीय मैच दर्ज हैं । ये अभी तक 2 ओलम्पिक, 2 वर्ल्ड कप, 2 एशियाड और दर्जनों देशी-विदेशी टूर्नामेंट खेल चुके हैं । 

अर्जुन एवार्ड विजेता  टिर्की  समय मिलने पर यपुवनेश्वर या अपने गांव चले जाते हैं । ये उड़ीसा के ग्रामीण इलाके में हाँकी को लोकप्रिय बनाना चाहते हैं । आज सुन्दरगढ़ जिले से 3 पुरुष और 3 महिलाएं भारतीय हॉकी टीम में हैं ।

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