अवतार 1983 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म

Jan 12, 2023 - 12:04
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अवतार 1983 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म
अवतार 1983 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म

अवतार 1983 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है। इसमें राजेश खन्ना और शबाना आज़मी मुख्य भूमिकाओं में हैं। इसका निर्देशन मोहन कुमार ने किया और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने संगीत दिया है। यह फिल्म व्यावसायिक नजरिये से हिट थी और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित थी। फिल्म ने कई फिल्मफेयर पुरस्कार नामांकन अर्जित किए थे। हालांकि, राजेश खन्ना की बजाय मासूम के लिए नसीरुद्दीन शाह को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला था। इसी वर्ष में सौतन और अगर तुम ना होते के साथ राजेश खन्ना के लिये 1983 अत्यधिक सफल रहा था।

संक्षेप

फिल्म की शुरुआत पत्नी राधा किशन (शबाना आज़मी) से होती है, जब वह अपने पति अवतार किशन (राजेश खन्ना) की मृत्यु का शोक मनाती है। तब कहानी तीस साल पीछे लौट जाती है। राधा, सेठ जुगल किशोर (मदन पुरी) की इकलौती बेटी होती है और एक गरीब लड़के, अवतार के साथ प्यार करती है। उसके पिता इस रिश्ते को अस्वीकार कर देते हैं तो दोनों अलग होकर शादी कर लेते हैं।

विभिन्न कठिनाइयों के बाद, दोनों अपने जीवन में सफल होते हैं। तीन दशकों के बाद, अवतार छोटे से घर और संपत्ति का मालिक है। उनके दो बेटे हैं, चंदन (गुलशन ग्रोवर) और रमेश (शशि पुरी)। चंदर की शादी रेणु से होती है, जबकि रमेश की शादी सुधा (प्रीती सप्रू) से होती है। अवतार के पास सेवक (सचिन) नाम का एक नौकर भी है।

उनके बेटों ने भी अमीर लड़कियों, सेठ लक्ष्मी नारायण (पिंचू कपूर) की बेटियों से शादी की है और वे अपनी पत्नियों द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित हैं। जब अवतार को यह पता चलता है, तो वह राधा और सेवक के साथ अपने घर को छोड़ देता है। एक साहूकार बावजी (सुजीत कुमार) की मदद से, अवतार अपना गैरेज शुरू करता है।

अवतार के पास उपकरण खरीदने के लिए पैसे नहीं होते हैं, वो वृद्ध है और एक दुर्घटना में उसका दाहिना हाथ लकवाग्रस्त है। सेवक उनकी मदद रक्त दान करके करता है और राधा और अवतार उसे अपने सच्चे बेटे के रूप में मान लेते हैं। इस बीच, रमेश और चंदर दोनों अपने जीवन का आनंद ले रहे होते हैं। अवतार की किस्मत बदल जाती है और जिस कार्ब्युरेटर पर वह काम कर रहा होता है, वह सफल परिणाम देता है। अवतार इंजन के पुर्ज़ों का निर्माण शुरू कर देता है और औद्योगिक साम्राज्य का निर्माण करता है जिसकी अध्यक्षता खुद उसकी पत्नी और सेवक करते हैं।

अवतार की सफलता लक्ष्मी नारायण के व्यवसाय पर भारी पड़ती है और वे चंदर को जिम्मेदार मानने लगता है। रमेश अपने बैंक में धोखाधड़ी करता है और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। शोभा मदद के लिए अवतार के पास आती है, लेकिन वह उसे फटकार लगाता है और उसे भेज देता है। राधा नाराज हो जाती है, लेकिन चुप रहती है। अवतार गुप्त रूप से बावजी को इस शर्त पर जमानत की राशि देता है कि वह किसी को न बताए। इस बीच, व्यापार में नुकसान के लिए चंदर को जिम्मेदार ठहराते हुए, लक्ष्मी नारायण उसे घर से निकाल देता है। रमेश, चंदर और सुधा सहायता के लिए राधा के पास जाते हैं, लेकिन अवतार नहीं मानता है। अगले दिन, अवतार कार्यालय जाता है और वापस नहीं आता है। राधा उसे बुलाती है और देर रात को अपने बच्चों की मदद करने के लिए उसे मनाने की कोशिश करती है, लेकिन वह सुनने से इनकार कर देता है। भावनात्मक रूप से, राधा आरोप लगाती है कि वह पथर दिल हो गया है। बावजी की मुलाकात राधा से होती है, जो उसे पूरी कहानी बताता है।

सच्चाई जानने पर, राधा को अपनी गलती का एहसास होता है और वह अवतार को फोन करने की कोशिश करती है। सेवक उसे सूचित करता है कि अवतार को दिल का दौरा पड़ा है, इसलिए परिवार अस्पताल जाता है। अवतार, पहले से ही अपनी वसीयत लिख चुका होता है और उसे राधा को सौंपता है और मर जाता है। कहानी वर्तमान में आती है, जहां राधा अवतार की अर्ध-प्रतिमा पे फूल सजाती है, और फिल्म समाप्त होती है।

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