संगीतकार ए.आर.रहमान वो जादूगर, जिसने हर आवाज़ को संगीत बना दिया

Jan 6, 2023 - 16:19
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संगीतकार ए.आर.रहमान  वो जादूगर, जिसने हर आवाज़ को संगीत बना दिया
संगीतकार ए.आर.रहमान वो जादूगर, जिसने हर आवाज़ को संगीत बना दिया

अल्लाह रक्खा रहमान लोकप्रिय रूप से ए॰ आर॰ रहमान भारतीय फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से हिन्दी और तमिल फिल्मों में संगीत दिया है। इनका जन्म 6 जनवरी, 1967 को चेन्नई, तमिलनाडु, भारत में हुआ। जन्मतः उनका नाम ‘अरुणाचलम् शेखर दिलीप कुमार मुदलियार’ रखा गया। धर्मपरिवर्तन के पश्चात उन्होंने अल्लाह रक्खा रहमान नाम धारण किया। ए. आर. रहमान उसीका संक्षिप्त रूप है। रहमान ने अपनी मातृभाषा तमिल के अतिरिक्त हिंदी तथा कई अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी संगीत दिया है। टाइम्स पत्रिका ने उन्हें मोजार्ट ऑफ मद्रास की उपाधि दी। रहमान गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय व्यक्ति हैं।[1] ए. आर. रहमान ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए दो ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुए है।इसी फिल्म के गीत 'जय हो' के लिए सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक कंपाइलेशन और सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत की श्रेणी में दो ग्रैमी पुरस्कार भी मिले।

प्रारंभिक जीवन

रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिली है। उनके पिता राजगोपाल कुलशेखर (आर. के. शेखर) मलयालम फ़िल्मों में संगीतकार थे। रहमान ने संगीत की शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की। मात्र ११ वर्ष की उम्र में अपने बचपन के मित्र शिवमणि के साथ रहमान बैंड रुट्स के लिए की-बोर्ड (सिंथेसाइजर) बजाने का कार्य करते थे। वे इलैयराजा के बैंड के लिए भी काम करते थे। चेन्नई के "नेमेसिस एवेन्यू" बैंड की स्थापना का श्रेय रहमान को ही जाता है। वे की-बोर्ड, पियानो, हारमोनियम और गिटार भी बजा लेते है। वे सिंथेसाइजर को कला और टेक्नोलॉजी का अद्भुत संगम मानते हैं। रहमान जब नौ साल के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और परिस्थितियाँ इतनी बिगड़ गई कि पैसों के लिए घरवालों को रहमान के पिता के वाद्य यंत्रों को भी बेचना पड़ा। इसी बीच उनके परिवार ने इस्लाम धर्म अपनाया। बैंड ग्रुप में काम करते हुए ही उन्हें लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक से स्कॉलरशिप भी मिली, जहाँ से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में डिग्री प्राप्त की।


व्यक्तिगत जीवन

१२ मार्च १९९५ को चेन्नई में रहमान का सायरा बानो से विवाह संपन्न हुआ। उनके दो बेटीयाँ खदिजा[6], रहीमा और एक बेटा अमीन हैं। रहमान की पत्नी सायरा बानो की सगी बहन के पति, जिनका नाम भी रहमान है, वे एक दक्षिण भारतीय अभिनेता है। रहमान के भाँजे जी. वी. प्रकाश कुमार भी एक प्रतिथयश संगीतकार हैं । वे रहमान की ज्येष्ठ भगिनि ए. आर. रेहाना के सुपुत्र हैं ।

कार्यक्षेत्र

१९९१ में रहमान ने अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरु किया। १९९२ में उन्हें फिल्म डायरेक्टर मणिरत्नम ने अपनी फिल्म रोजा में संगीत देने का न्योता दिया। फिल्म म्यूजिकल हिट रही और पहली फिल्म में ही रहमान ने फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता। इस पुरस्कार के साथ आरंभ हुआ रहमान की जीत का सिलसिला आज तक जारी है। रहमान के गानों की २०० करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी हैं। आज वे विश्व के टॉप टेन म्यूजिक कंपोजर्स में गिने जाते हैं। उन्होंने तहजीब, बॉम्बे, दिल से, रंगीला, ताल, जीन्स, पुकार, फिज़ा, लगान, मंगल पांडे, स्वदेश, रंग दे बसंती, जोधा-अकबर, जाने तू या जाने ना, युवराज, स्लमडॉग मिलियनेयर, गजनी जैसी फिल्मों में संगीत दिया है। उन्होंने देश की आजादी की ५० वीं वर्षगाँठ पर १९९७ में "वंदे मातरम्‌" एलबम बनाया, जो अत्यधिक सफल रहा। भारतबाला के निर्देशन में बनी एलबम "जन गण मन", जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुड़ी कई नामी हस्तियों ने सहयोग दिया उनका एक और महत्वपूर्ण काम था। उन्होंने स्वयं कई विज्ञापनों के जिंगल लिखे और उनका संगीत तैयार किया। उन्होंने जाने-माने कोरियोग्राफर प्रभुदेवा और शोभना के साथ मिलकर तमिल सिनेमा के डांसरों का ट्रुप बनाया, जिसने माइकल जैक्सन के साथ मिलकर स्टेज कार्यक्रम दिए।


मानवीय कार्य
रहमान विभिन्न धर्मार्थ कार्यों में शामिल हैं। २००४ में रहमान को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बंद करो टीबी, भागीदारी के वैश्विक राजदूत, एक परियोजना के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने बच्चों, भारत बचाओ सहित दान के लिए समर्थन दिखाया गया है और उनके गीत "इंडियन ओशन" के लिए यूसुफ इस्लाम के साथ काम किया है।


सम्मान और पुरस्कार
संगीत में अभूतपूर्व योगदान के लिए १९९५ में मॉरीशस नेशनल अवॉर्ड्स, मलेशियन अवॉर्ड्स।
फर्स्ट वेस्ट एंड प्रोडक्शन के लिए लारेंस ऑलीवर अवॉर्ड्स।
चार बार संगीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता।
२००० में पद्मश्री से सम्मानित।
मध्यप्रदेश सरकार का लता मंगेशकर अवॉर्ड्स।
छः बार तमिलनाडु स्टेट फिल्म अवॉर्ड विजेता।
११ बार फिल्म फेयर और फिल्म फेयर साउथ अवॉर्ड विजेता।
विश्व संगीत में योगदान के लिए २००६ में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से सम्मानित।
२००९ में फ़िल्म स्लम डॉग मिलेनियर के लिए गोल्डेन ग्लोब पुरस्कार।
ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार।
२००९ के लिये २ ग्रैमी पुरस्कार, स्लम डॉग मिलेनियर के गीत जय हो.... के लिये: सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक व सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिये।

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